उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
गरिमा समझ गई कि बाबा की कथा और पिछले वर्ष हुआ भारत-पाक युद्ध परस्पर मिलकर उसके पति के स्वप्न का रूप बन गये हैं।
वह बोली, ‘‘अब सो जाइये। स्वप्न कभी ठीक सिद्ध नहीं होते। देवताओं की सहायता के लिये राम अभी उत्पन्न नहीं हुए।’’
‘‘एक पुत्रेष्टि यज्ञ तो हमारे घर में भी हुआ है, परन्तु उत्पन्न हुआ राम प्रतीत नहीं होता। ऐसा समझ आया है कि अश्विनी कुमारों ने फल-पाक बना कर नहीं भेजा।’’
गरिमा हँस पड़ी। उसने पूछ लिया, ‘‘कितने बजे सोये थे?
‘‘कुछ पता नहीं। पढ़ते-पढ़ते ही सो गया था। नहीं जानता कि कब सोया था।’’
कुलवन्त ने अपने तकिये के समीप पड़ी बाबा से कही हस्तलिखित पुस्तक उठाकर देखी और कह दिया, ‘‘आज रात मैंने पचास पृष्ठ पढ़े हैं। अवश्य चार घण्टे तक पढ़ता रहा हूँ। अर्थात् एक बजे सोया हूँ और अब तीन बजे हैं। इस प्रकार दो घण्टे की नींद ले चुका हूँ।’’
‘‘तो अब सो जाइये।’’
‘‘चित्त करता है कि जल गरम कर स्नान कर लूँ। पीछे चाय पीकर सोने का यत्न करूँ।’’
अब गरिमा उठी और उसने गीजर का स्विच दबा दिया। कुलवन्त बिस्तर से निकल स्नान की तैयारी करने लगा।
जब तक कुलवन्त ने स्नान किया, गरिमा ने चाय तैयार कर दी और दोनों ने चाय पी। इस समय चार बज गये थे। गरिमा तो अपना स्वाध्याय करने लगी। वह रामचरित मानस का पाठ किया करती थी और कुलवन्त पुनः सो गया। अब वह गहरी नींद सोया और चार घण्टे सोकर आठ बजे उठा।
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