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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


अल्पाहार लेकर कुलवन्त और गरिमा नीचे महिमा तथा उसकी सास से मिलने चले गये।

महिमा और सुन्दरी अल्पाहार ले रही थीं। जब कुलवन्त इत्यादि वहाँ गये तो सुन्दरी ने अल्पाहार के लिये पूछ लिया।

कुलवन्त ने कहा, ‘‘मौसी! हम खा-पीकर पेट भर आये हैं।’’

‘‘तो एक-एक प्याला चाय ही पी लो।’’

‘‘चाय तो हम दो-दो बार ले चुके हैं।’’ कुलवन्त कहता-कहता हँस पड़ा।

जब सुन्दरी और महिमा इनके हँसने का कारण नहीं समझे तो गरिमा ने बताया, ‘‘यह रात बाबा वाली पुस्तक पढ़ते-पढ़ते सो गये थे। सोये-सोये देवलोक के स्वप्न देखने लगे। उसमें किसी प्रकार की भयंकर घटना देख यह जाग पड़े। जब पुनः सो नहीं सके तो इन्होंने पानी गरम कराया, स्नान किया और तब चाय पीकर सोये। अभी-अभी जागे हैं और अल्पाहार लेकर अवकाश पा नीचे आये हैं।’’

इस पर सुन्दरी ने कह दिया, ‘‘आज महिमा भी कह रही थी। कि उसने भी स्वप्न में सुशान्त के पिता को देखा है। यह विचित्र लड़की है।

‘‘जब वह जीवित था, तब उससे घृणा करती थी और अब जब वह नहीं रहा तो उसके स्वप्न लेती रहती है।’’

कुलवन्त ने गम्भीर हो देखा कि महिमा अपनी सास के लांछन का उत्तर नहीं दे रही। वह आँखें नीचे किये नाश्ता ले रही थी।

कुलवन्त के मन में आया कि महिमा को सत्य बात बता देनी चाहिये। परन्तु वह वचन लेना चाहता था कि वह कोई ऐसी बात नहीं करेगी जिससे सरकारी क्षेत्रों में अमृत के जीवित रहने का पता चल जाये।

इससे उसने कहा, ‘‘एक बात तो मुझे समझ आ रही है कि स्वप्न सर्वथा असत्य नहीं भी होते। इनमें सच्चाई का अंश अवश्य रहता है।

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