उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मैं रात ब्रह्मा, इन्द्र और राम-विवाह की बातें पढ़ रहा था और जब सोया तो पाकिस्तान लंका समझ आने लगा। अयूब रावण समझ आया, कोसिगिन ब्रह्मा के रूप में दिखायी दिया। और अपने तत्कालीन प्रधान-मन्त्री देवेन्द्र प्रतीत हुए। देवेन्द्र की हत्या हुई देख ही मेरी नींद खुली थी।’’
इससे महिमा ने उत्साहित हो पूछ लिया, ‘‘तो आप समझते हैं कि मेरे स्वप्नों में भी सच्चाई हो सकती है?’’
‘‘मुझे तो इसमें कोई विस्मयजनक बात प्रतीत नहीं होती।’’
‘‘तो यह अनुसन्धान का विषय है?’’
‘‘मैंने इस दिशा में कुछ तो अनुसन्धान किया है।’’
‘‘मैंने इस दिशा में कुछ तो अनुसन्धान किया है।’’
‘‘सत्य! परन्तु आपने आज तक बताया नहीं?’’
‘‘वह इसलिये कि यदि उसका हमारे कार्यालय को पता चल गया तो उसको पकड़ने का यत्न किया जायेगा और उस पर कोर्ट-मार्शल भी हो सकता है।’’
महिमा अवाक् अपने जीजाजी का मुख देखती रह गयी। सुन्दरी भी विस्मय में मुख देख रही थी। गरिमा देख रही थी कि उसके पति के मुख पर किसी रहस्य को प्रकट करने की मुद्रा बनी हुई है। वह कभी-कभी बलवन्त के लिये कुछ मनोरंजक खिलौना लाते तो ऐसी ही मुद्रा बना उसे कहा करते थे, ‘‘बलवन्त! बताओं, मैं क्या लाया हूँ?’’
उसे यह भी स्मरण था कि बलवन्त के पिता ने एक पाकिस्तानी वायु-सेना के एक अफसर द्वारा पहले भी अमृत की खोज करवायी थी। इस कारण वह समझी थी कि सत्य ही कोई नयीं बात पता लगी है।
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