उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
इस कारण उसने कह दिया, ‘‘जब इतना बताया है तो अपनी खोज का परिणाम भी बता दीजिये।’
‘‘मुझे भय है कि मेरी जानकारी की बात कहीं कार्यालय वालों को पता चल गयी तो बहुत मुसीबत हो जायेगी।’’
गरिमा ने ही आगे बात चलायी। उसने कहा, ‘‘परन्तु यहाँ बतायी बात कैसे आपके कार्यालय वालों को चली जायेगी?’’
‘‘यदि कोई रहस्य की बात बताऊँ तो तुम लोग अपनी सहेलियों को नहीं बताओगी क्या?’’
‘‘हम क्यों बतायेगी?’’
‘‘हाँ। यदि तुम सब लोग सौगन्धपूर्वक वचन दो कि किसी से नहीं कहोगे तो एक अपनी जानकारी की बात बता सकता हूँ।’’
गरिमा ने कह दिया, ‘‘हाँ, नहीं बतायेंगे।’’
कुलवन्त ने गम्भीर हो कहा, ‘‘दीदी भी वचन दें तो मैं अमृत के विषय में बता सकता हूँ।’’
सुन्दरी ने कुलवन्त के घुटने को हाथ लगाकर कहा, ‘‘बेटा! अब बता दो। मेरा तो दिल धक्-धक् कर रहा है। अब यदि नहीं बताओगे तो यह बैठने लगेगा।’’
‘‘माताजी! वह जीवित है। फ्रांस में एक स्थान पर रहता है। उसने अपने जीवित बच पाकिस्तान से निकलने की कथा मुझे सुनायी है।’’
‘‘कहाँ मिला था तुम्हें?’’ सुन्दरी ने उत्सुकता से पूछ लिया।
इस पर कुलवन्त ने उससे लन्दन हवाई पत्तन पर भेंट का समाचार सुना दिया और वह सब कथा सुना दी जो अमृत ने उसे बतायी थी।
अब महिमा ने ठण्डी साँस लेते हुए कहा, ‘‘मुझे ठीक ही स्वप्न में वह किसी लड़की के कन्धे पर हाथ रखे खड़े दिखायी देते रहे हैं। मैं समझती हूँ कि उनके भाग्य में स्थान-स्थान का गन्दा पानी पीना ही लिखा है।’’
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