उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘मैं विचार कर रहा हूँ कि दीदी से कहूँ कि उन्हें एक पत्र लिखें। मैं वह पत्र उसके पास भेज दूँगा।’’
‘‘क्या लाभ होगा इससे?’’ महिमा का प्रश्न था।
‘‘लाभ का आश्वासन नहीं दे सकता। परन्तु उसने मुझे बताया था कि यह पाँचवीं बीवी है उसकी। उसके भाग्य में ये लड़कियाँ चलचित्र की भाँति आती और विलीन हो जाती है। वह आशंका कर रहा था कि वह लड़की भी उसके पास नहीं रह सकती।’’
‘‘तो कोई और मिल जायेगी।’’ महिमा ने कह दिया।
अब सुन्दरी ने कहा, ‘‘बेटा कुलवन्त! तुम ही उसे लिखो। उसे कह भेजो कि तुम्हारी माँ को तुम्हारे बच जाने से प्रसन्नता हुई। अब उसे यहाँ ही रहना चाहिये।’’
‘‘माताजी! वह मेरे इंगलैण्ड में रहते हुए यही ‘एयर फ्रांस’ में नौकरी पा गया था। उन दिनों वह पैंरिस और न्यूयॉर्क में आता-जाता था।’’
‘‘यहाँ आकर तुमने उसे कोई पत्र लिखा है क्या?’’
‘‘अभी नहीं लिखा। मैं तीन दिन से विचार कर रहा था कि आपको उसकी कथा बताऊँ और फिर दीदी की प्रतिक्रिया देख उसे लिखूँ।’’
‘‘तो जीजाजी!’’ महिमा ने कहा, ‘‘उन्हें लिख दीजिये कि मुझे उनके निरुद्ध कुछ नहीं कहना। परमात्मा उनको सुमति दे।’’
‘‘ठीक है। लिखूँगा। और यदि तुम लिखना चाहो तो मैं तुम्हारा पत्र उसे भेज सकता हूँ।’’
‘‘नहीं! मैं लिखना नहीं चाहती। मैं उनका पता जानना भी नहीं चाहती। इस पर भी मैं इस दुर्घटना में उनको दोषी नहीं मानती।’’
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