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परम्परा
परम्परा
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ :
Ebook
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पुस्तक क्रमांक : 9592
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
‘‘तीन वर्ष से तुम छुट्टियों में बिलासपुर में नहीं आयीं। इससे हम समझते हैं कि तुम हमसे नाराज़ हो। वैसे तुम्हारे साथ हुई दुर्घटना में हम अपने को उत्तरदायी मानते हैं। परन्तु बेटी, मनुष्य के सब काम उसके अपने हाथ में नहीं होते। प्रारब्ध ऐसे खेल खेलाता है कि जिनका हम स्वप्न में भी विचार नहीं कर सकते।’’
सुन्दरी को पुराने काल की बातें स्मरण आने लगी थीं और उसकी आँखें डबडबा आयी थीं। कुलवन्त ने बात बदलते हुए गरिमा को कहा, ‘‘माताजी, बाबाजी वाला कथा-ग्रन्थ लायी हैं। वह लेकर ऊपर चली आओ। उनका विचार है कि अमृतलालजी से मिलने के पूर्व मैं कथा का प्रथम खण्ड पढ़ लूँ।’’
सुन्दरी महिमा के पास ही रही। कुलवन्त रात-भर कथा को पढ़ता रहा। प्रथम खण्ड समाप्त करते-करते रात के ढाई बज गये थे। अगले दिन रविवार था और उसे कार्यालय में नहीं जाना था। अतः वह रात को बहुत देर तक न सोने की कमी पूरी करने के लिए दिन के आठ बजे तक सोता रहा। सुन्दरी और महिमा ऊपर की मंजिल पर आयीं और कुलवन्त को अभी भी सोये देख गरिमा से उसके स्वास्थ्य के विषय में पूछने लगीं तो गरिमा हँस पड़ी। उसने कहा, ‘‘मैं बारह बजे तक जागती रही थी और यह बाबा जी वाली पुस्तक रात देर तक पढ़ते रहे थे। ऐसा अनुभव होता है कि बाबा जी का जादू इनके मस्तिष्क पर भी सवार हो गया है।’’
‘‘बेटी गरिमा! इस समय इनको जगा देना चाहिये। इतनी देर तक सोने वालों के घर से लक्ष्मी रुष्ट होकर चल देती है।’’
बच्चे जाग रहे थे। सुन्दरी गरिमा की बच्ची को गोद में ले उससे खेल रही थी। गरिमा ने बलवन्त को कहा, ‘‘देखो! भीतर चले जाओ। पापा को जगा कर कहो कि बड़ी माँ कह रही हैं कि चाय का समय हो गया है।’’
बलवन्त भीतर गया और पिता के पलंग पर चढ़ पिता की गालों पर ऐसे प्यार देता हुआ जैसे माँ उसको जगाने के लिये दिया करती थी, कहने लगा, ‘‘पापा! जागो न। बड़ी माँ आयी हैं।’’
बहुत यत्न करने पर ही बलवन्त पिता को जगा सका। जब कुलवन्त को पता चला कि महिमा की सास बाहर आयी है तो लपक कर पलंग से उठा और बाथ-रूम में चला गया।’
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