उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
पाकिस्तान का विदेश मन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टों यह समझ रहा था कि यह भारत को और विशेष रूप में हिन्दूओं को गालियाँ दे-देकर पाकिस्तानी जनता को प्रसन्न कर रहा है।
इस प्रकार भारत को कोसने में जब भुट्टों बाजी ले जाने लगा तो अयूब को चिन्ता लग गयी कि उसका चेला उसको भी मात कर रहा है। अतः पाकिस्तान के प्रधान ने अपने ही विदेश-मन्त्री को पदच्युत कर उसे जेल में डाल दिया।
अपने देश की जनता को अयूब ने यह कह कर प्रसन्न कर दिया कि वह ताशकन्द समझौते को भंग करने के लिये कह रहा है और इससे रूस से पाकिस्तान का द्वेष प्रकट होने लगेगा।
इससे पाकिस्तान की जनता क्या समझी, कहना कठिन था। हाँ भारत का राज्य और जनता खुशियाँ मनाने लगी थी। समाचार-पत्रों ने इस पर सम्पादकीय लिखे और राजनीतिक नेताओं ने रूस के साथ रहने से अपने को बधाई दी।
लगभग यही बात देवलोक में हुई थी। राम के वन भेज दिये जाने पर देवेन्द्र समझा कि रावण से एक बार युद्ध हुआ तो कोशल राज्य की देवता सहायता कर देंगे और कोशल राज्य की विजय करा देंगे।
पाकिस्तान में विशेष रूप में पूर्वी पाकिस्तान के लोग इस घटना से प्रसन्न नहीं थे। वे समझ रहे थे कि दोनों तानाशाह हैं और ये परस्पर झगड़ कर जनता को मूर्ख बना रहे हैं।’’
कुलवन्त फ्रांस में था जब भुट्टों को जेल से छोड़ा गया था। उसके साथ उसका एक साथी वाई० वोपत फ्रांस में कुछ लड़ाकू हवाई जहाज खरीदने की बातचीत करने गया हुआ था। वोपत ने पैरिस के एक समाचार-पत्र में भुट्टों के स्वतन्त्र होने का समाचार पढ़ा और उसमें यह भी पढ़ा कि भारत में इस स्थिति बदलने से सन्तोष अनुभव किया गया है। यह पढ़ वह इस सन्तोष में कारण नहीं समझा तो उसने कुलवन्त से पूछा, ‘‘भारत के इस सन्तोष से क्या समझे हैं, कुलवन्त?’’
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