उपन्यास >> परम्परा परम्परागुरुदत्त
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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
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कहानी तो सुनी समझी थी, परन्तु राम के इतिहास की पृष्ठ-भूमि कुलवन्त के लिये विशेष रुचि का विषय बन रही थी। कहानी में आगे लिखा था–
राम के वन जाने के समाचार से अयोध्या नगरी और पूर्ण कोशल राज्य में शोक छा गया। जहाँ नगर में राज्यभिषेक का उत्सव मनाने के लिये नगरवासी सजधज कर तैयार हो रहे थे, वहाँ देवलोक में इस समाचार से नयी लहर उत्पन्न हो गयी। कुछ उत्सुकता, कुछ आशा और कुछ भय की भी भावी गतिविधियाँ दिखायी देने लगी थीं।
जिस दिन कुलवन्त ने कहानी का यह अंश पढ़ा था उसी दिन भारत के समाचार-पत्रों में यह समाचार प्रकाशित हुआ था कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब और उसके विदेश मन्त्री भुट्टों में फूट पड़ गयी है।
भुट्टों पाकिस्तान का विदेश-मन्त्री राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भारत और भारत के नेताओं को गालियाँ दे चुका था और सम्पूर्ण भारतवासियों को इससे रोष था। इस समाचार से प्रायः भारतवासी यह समझने लगे थे कि यह पाकिस्तान में किसी प्रकार की गड़बड़ के लक्षण हैं और इससे वे लाभ की आशा करने लगे थे।
देवता समझने लगे थे कि अब कोशल देश और रावण के बीच युद्ध होगा। वह विचार कर रहा था कि मानव मन कैसे सब कालों में समानान्तर रेखाओं में चलता है। समान परिस्थतियों में समान व्यवहार स्वीकार करता है।
अयूब भारत को गालियाँ दे-देकर, पाकिस्तानी जनता का ध्यान राज्य से हटा कर एक शत्रु देश पर केन्द्रित कर यह समझ रहा था कि उसे गुलछर्रे उड़ाने का अवसर मिलता रहेगा। परन्तु वहाँ के समझदार लोग समझ रहे थे कि देश का सर्वनाश हो रहा है।
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