लोगों की राय

उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

352 पाठक हैं

भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


कुलवन्त हँस पड़ा। हँसते हुए कहने लगा, ‘‘माताजी! यह इसका दोष नहीं। इसे अंग्रेजी में ‘ऐनीलिज्म’ (पशुपन) कहते हैं और यह प्रत्येक मनुष्य में न्यूनाधिक मात्रा में उपस्थित होता है। अमृत जी में कुछ अधिक प्रतीत हुआ है।’’

‘‘तो,’’ सुन्दरी ने डाँट के भाव में कहा, ‘‘मैं इसके पशुपन में सहायक हो जाऊँ? यह अभिप्राय है आपका?’’

‘‘नहीं; मेरे कथन का अर्थ यह है कि इस पशुपन का हम सब यहाँ विरोध करेंगे।’’

सुन्दरी के माथे से त्योरी उतर गयी। उसने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘देखो अमृत! मेरा कहा मानो। अभी चाय समाप्त कर मेरे साथ नीचे चलो। मैं तुम्हारी माँ होते हुए तुम्हारी सहायता करना अपना कर्तव्य समझती हूँ, परन्तु तुम्हारा प्रयत्न ठीक दिशा में और ठीक ढंग से होना चाहिये।

‘‘मेरा विचार है कि तुमको उससे अपने पूर्व के व्यवहार पर क्षमा माँग लेनी चाहिये और भविष्य में वैसी बात न करने का वचन देना चाहिये।

‘‘मैं तुम्हारी सिफारिश कर दूँगी। परन्तु मेरे सिफारिश करने से पूर्व तुमको यह भी तो बताना होगा कि तुमने पिछले सात वर्ष से अपना समाचार क्यों नहीं भेजा? इन सात वर्षों में अपने एक ही पुत्र के मारे जाने के समाचार से जो दुःख और क्लेश मुझे और तुम्हारे पिता को हुआ है, उसका भी तो कुछ प्रतिकार होना चाहिये। बिना उसका प्रतिकार किये मैं सिफारिश नहीं लगाऊँगी।’’

इस प्रकार की बौद्घिक बातें होते हुए अमृत आश्वस्त हो स्वस्थ चित्त से चाय पीने लगा। उसने अब मुस्कराते हुए पूछा, ‘‘पर माँ! तुम पुत्र के नाते सिफारिश क्यों नहीं लगाओगी?’’

‘‘इसलिये कि तुमने अभी तक पितृ-ऋण नहीं उतारा। अब तक तुमको मेरे घर में चार-पाँच पोते-पोतियाँ उत्पन्न कर देने चाहिये थे। तुमने यह कर्तव्य अभी तक पालन नहीं किया। अभी तक तुम हमसे भी छुपे रहे थे। भला क्यों?’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book