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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


उसके मन में एक योजना बन गयी और वह अपनी लड़की को विमान में बैठा लंका जा पहुँचा। उसका विचार था कि वह अपनी लड़की का लंका के अधिपति कुबेर से विवाह कर देगा तो वह पूर्ण रूप में राजा नहीं तो लगभग राजा बन जायेगा।

अतः लंका में एक स्थान पर ठहर कर वह राजप्रासाद में राजा को देखने गया। वहाँ जाकर वह समझ गया कि उसकी योजना सफल नहीं हो सकेगी।

जब सुमाली राजप्रासाद के बाहर पहुँचा तो वहाँ एक महल से भी बड़ा आकाशाचारी विमान खड़ा था। वह उसे देख चकित रह गया। वह अभी उसे देख ही रहा था कि राजा अपनी रानी के साथ राजप्रासाद से निकला।

कुबेर अति सुन्दर और ओजस्वी युवक था और उसकी पत्नी एक देवकन्या थी, जो उससे भी अधिक सुन्दर थी।

इनको देख सुमाली समझ गया कि उसकी लड़की का विवाह यहाँ नहीं हो सकेगा। यदि किसी प्रयोजन से हो भी गया तो वह इस रानी की तुलना में मान-प्रतिष्ठा नहीं पा सकेगी। अतः उसकी योजना कि वह पुनः लंका में प्रभावशाली व्यक्ति बन सकेगा, सम्भव प्रतीत नहीं हुई।

अतः अपने निवास-स्थान पर पहुँच उसने अपनी योजना बदल दी। उसने विचार किया कि इस युवक का पिता अब धर्म-यौवन में पहुँच गया होगा और उससे इस जैसा सुन्दर पुत्र प्राप्त कर उसके द्वारा लंका पर अधिकार प्राप्त करे।

इस विचार के आते ही वह अपने विमान पर चढ़कर देवलोक जा पहुँचा और वहाँ महर्षि विश्रवा के आश्रम के समीप विमान खड़ा कर ऋषि को देखने चला गया।

महर्षि एक कुटिया के बाहर वृक्ष के नीचे आसन लगाये स्वाध्याय कर रहा था।

विश्रवा अति ओजवान व्यक्ति था। उसकी पत्नी रोहिणी महर्षि भारद्वाज की लड़की थी और उसने एक ही सन्तान ऋषि को देकर पृथक रहना आरम्भ कर दिया था। इससे ऋषि बड़ी आयु हो जाने पर भी अत्यन्त ओज का स्वामी युवक ही प्रतीत होता था।

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