लोगों की राय
उपन्यास >>
परम्परा
परम्परा
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ :
Ebook
|
पुस्तक क्रमांक : 9592
|
|
8 पाठकों को प्रिय
352 पाठक हैं
|
भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
सुमाली विमान पर लौट आया और अपनी लड़की कैकसी से बोला, ‘‘कैकसी! मैं तुम्हें यहाँ अपने परिवार का एक महान् कल्याण करने के लिये लाया हूँ। यहाँ एक अति ओजस्वी महर्षि रहता है। उसकी पहली पत्नी से सन्तान है। वह सन्तान अति सुन्दर है। मैं चाहता हूँ कि तुम इस ऋषि से विवाह कर वैसी ही सुन्दर और ओजस्वी सन्तान प्राप्त करो।
‘‘इससे हमारा परिवार पुनः अपना पुराना राज्य प्राप्त करने में सफल हो सकेगा।’’
कैकसी ने कहा, ‘‘मुझे महर्षि दिखा दीजिये। यदि मेरी इच्छा हुई तो मैं उससे विवाह कर लूँगी।’’
‘ठीक है। चलो मेरे साथ।’’ सुमाली स्वयं ऋषि के सम्मुख जाना नहीं चाहता था। इस कारण उसने दूर से ही महर्षि को दिखाकर कहा, ‘‘अब तुम स्वयं उसे देख और इच्छानुसार बातचीत कर लो।’’
कैकसी ने कुबेर को देखा था और उसने उसके पिता को भी देख लिया। वह उसे पसन्द कर उससे कुबेर जैसा पुत्र पाने की इच्छा करने लगी।
कैकसी ने ऋषि को पसन्द किया और विमान में लौट आयी। वहाँ उसने सुन्दर वस्त्र पहने तथा श्रृंगार किया और कुटिया के बाहर जा पहुँची। ऋषि ध्यानावस्थित आँखें मूँदे आसन पर बैठा था। उसके सम्मुख हवन, यज्ञ के लिये ईधनादि सामग्री रखी थी।
कैकसी ऋषि के सामने जा खड़ी हुई। ऋषि का ध्यान भंग नहीं हुआ। वह हाथ जोड़ खड़ी रही और ऋषि के आँख खोलने की प्रतीक्षा करने लगी।
विवाह के चिन्तन मात्र से वह कामातुर हो चंचलता अनुभव करने लगी थी और खड़ी-खड़ी भूमि पर पाँव के अँगूठे से रेखायें खीचने लगी थी।
वह दो घड़ी-भर खड़ी रही, तब ऋषि की आँख खुली। ऋषि हवन के लिये अरणी को घिस कर अग्नि प्रदीप्त करने लगा तो उसकी दृष्टि सामने खड़ी इस अनिन्द्य सुन्दरी की ओर चली गयी। ऋषि ने देखा। दोनों की आँखें मिली तो कैकसी की आँखें झुक गयीं। ऋषि ने पूछ लिया, ‘‘सुन्दरी! क्या चाहती हो? किसलिये हाथ जोड़े खड़ी हो?’’
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai