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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


गरिमा ने कहा, ‘‘पर अमृत जीजाजी के स्वर्गवास हो जाने का समाचार है। यह वह नहीं हो सकते।’’

‘‘कहाँ देहान्त हुआ था उनका?’’

‘‘देहान्त तो श्रीनगर में हुआ था। वह घर से लड़कर वहाँ गये थे। उनके विषय में अन्तिम समाचार यह था कि वह वहाँ अपनी प्रेमिका से मिलने गये थे। प्रेमिका ने विवाह कर लिया था। जीजाजी ने प्रेमिका के घर वाले से किसी प्रकार का झगड़ा किया और उस झगड़े में मारे गये। उनके शव को डल झील में फेंक दिया गया था। वह शव गला-सड़ा झील में तैरता पाया गया। शव की जेब से उनकी पाकेट डायरी मिली थी। वह भी गल चुकी थी। परन्तु उसमें जीजाजी के घर का पता लिखा मिल गया था।

जीजाजी के पिता को सूचना भेजी गयी तो वह वहाँ गये। उनके वहाँ पहुँचने से पूर्व शव जला दिया गया था, परन्तु उनके गले-सड़े कपड़े और डायरी पुलिस ने रखी हुई थी। उनको देखकर पिताजी को भी यही समझ आया था कि शव जीजाजी का ही था।

‘‘वहाँ के लोगों से पता चला कि शव मिलने के तीन दिन पूर्व झील के किनारे शव मिलने के स्थान के समीप कुछ लोगों में झगड़ा हुआ था, परन्तु उस झगड़े में घायल कोई नहीं हुआ था। जीजाजी के पिताजी, बस इतना ही समाचार लेकर लौट आए थे। इस बात को आज आठ वर्ष हो चुके हैं।’’

कुलवन्तसिंह ने कहा ‘‘बहुत ही विचित्र है।’’

अब महिमा ने पूछा, ‘‘देखने में कैसा प्रतीत होता है वह व्यक्ति?’’

‘‘अच्छा, सुन्दर और बहुत ही चुस्त व्यक्ति है। सर्विस-बुक में उसका पता श्रीनगर का लिखा है।’’

‘‘मेरा विचार है कि उसका और उसके पिता का नाम घटनावश वैसा है।’’ महिमा ने मन से बात निकाल देने के लिये कह दिया।

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