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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


इस समय सुखिया चाय ले आयी। परन्तु कुलवन्तसिंह से दिये समाचार का प्रभाव तीनों बैठे व्यक्तियों पर था और वे चुपचाप चाय ले रहे थे। चाय समाप्त हुई तब भी तीनों अपने-अपने विचारों में निमग्न थे।

महिमा सबसे पहले स्वाभाविक स्थिति में आयी। उसने बात बदलने के लिए कह दिया, ‘‘देश की राजनीतिक स्थिति तो बदलती जाती है।’’

‘‘क्या बदलती जाती है?’’

‘‘पाकिस्तान से एक अत्यन्त तनाव की स्थिति है। वहाँ पिछले सात वर्ष से तनाव की अवस्था चली आ रही है। एक तानाशाह के हटाये जाने पर एक दूसरे सैनिक तानाशाह गद्दी पर आ गये हैं और अब उनके विरुद्ध भी आन्दोलन और विद्रोह के लक्षण दिखायी देने लगे हैं।’’

‘‘पर वहाँ की स्थिति से हमारा क्या सम्बन्ध है?’’ गरिमा का प्रश्न था।

‘‘सम्बन्ध तो इस युग में अमेरिका से भी है। पाकिस्तान तो उससे अधिक समीप है।’’ महिमा का कहना था।

‘‘वैसे तो,’’ कुलवन्तसिंह ने कह दिया, ‘‘भूमण्डल के सब-के-सब देश इतने समीप-समीप हो गये हैं कि परस्पर प्रभाव डालते रहते हैं। परन्तु आज स्थिति यह है कि बड़ी लड़ाई हो नहीं सकती।’’

महिमा ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘जीजाजी से जब भी देश की राजनीति की बातचीत की जाती है तो वह युद्ध की बात करने लगते हैं। मैं यह कह रही हूँ कि दोनों देशों में शान्ति रहनी चाहिये। एक में दुर्व्यवस्था होगी तो उसका प्रभाव दूसरे पर भी होगा।’’

कुलवन्तसिंह ने मुस्कराते हुए कह दिया, ‘‘जब पड़ोस में दुर्व्यवस्था हो तो युद्ध होगा ही। दुर्व्यवस्था का अन्य कोई परिणाम हो ही नहीं सकता।’’

‘‘परन्तु भारत तो लड़ेगा ही नहीं। इस कारण यदि लड़ाई हुई तो वह दो-चार दिन के लिए ही होगी।’’ गरिमा का विचार था।

‘‘जीजाजी! पूर्वी पाकिस्तान की ओर से सीमा पर नित्य सीमोल्लंघन तथा गोली चलने की घटनायें होती रहती हैं। इन घटनाओं से देशों में युद्ध नहीं हो सकता।’

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