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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


महिमा ने पुनः विषय बदल दिया। उसने देश की राजनीतिक गतिविधियों पर चर्चा आरम्भ कर दी। उसने कहा, ‘‘वर्त्तमान राजनीति में एक बात सबसे अधिक सफल होती है। वह यह कि निश्चित बात की जाँच और उसके सत्य-झूठ का विचार छोड़कर उसे साहस के साथ उपस्थित किया जाये।

‘‘प्रजा जड़ होती है। जो कोई इसे दृढ़ता से जिधर को ठोकर मारता है, यह उधर ही चल देती है। अतः किसी नीति से कल्याण होगा अथवा अकल्याण होगा, यह पीछे पता चलेगा। समय पर तो प्रजा उसके साथ हो जाती है जो अपनी बात को निडर होकर लोगों के समक्ष रखता है। जो दृढ़ता से यह कहता है कि उसकी योजना से अधिक-से-अधिक लोगों का कल्याण होगा, वह जनता का नेता बन जाता है।’’

‘‘कांग्रेस ऐसी ही है। एक बात मैं आपको बताता हूँ कि यद्यपि निकट भविष्य में युद्ध की आशंका नहीं, परन्तु हमारी सेना में और सैनिक सामग्री के कारखानों में तैयारी ऐसे हो रही है कि मानो युद्ध होने ही वाला है।’’

‘इसी को देखकर तो मैं समझती हूँ कि युद्ध होगा।’’ महिमा का कथन था, ‘‘देवताओं, मेरा अभिप्राय है कि भले लोग सदा युद्ध को पसन्द नहीं करते और उसकी अवहेलना करते रहते हैं। इस पर भी युद्ध होते हैं और प्रायः भले लोग युद्ध की तैयारी में पिछड़े रह जाते हैं।’’

‘‘कुलवन्तसिंह हँस पड़ा। वह उठते हुए बोला, ‘‘चलो गरिमा! दीदी को अब अपना काम करने दो। मैं जब आया था तो यह कुछ पढ़ रही थीं।’’

‘‘आप चलिये। मैं आती हूँ। आप बच्चों को साथ ले चलिये।’’

कुलवन्त समझ गया गरिमा बहन से पृथक् में बात करना चाहती है। उसे विश्वास था कि यदि कुछ भी बात ऐसी होगी जो उसको भी जाननी चाहिए तो वह उसे बता दी जायेगी। पहले भी ऐसा हुआ करता था। इस कारण उसने बच्ची को गोद में लिया और मकान की ऊपर मंजिल पर चला गया।

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