ई-पुस्तकें >> सरल राजयोग सरल राजयोगस्वामी विवेकानन्द
|
4 पाठकों को प्रिय 372 पाठक हैं |
स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण
द्वितीय पाठ
इस योग का नाम अष्टांग योग है, क्योंकि इसको प्रधानत: आठ भागों में विभक्त किया गया है। वे हैं :
प्रथम - यम। यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है और सारा जीवन इसके द्वारा शासित होना चाहिए। इसके पाँच विभाग हैं :
(2) मन, वचन, कर्म से लोभ न करना।
(3) मन, वचन और कर्म की पवित्रता।
(4) मन, वचन और कर्म द्वारा पूर्ण सत्यनिष्ठ होना।
(5) अपरिग्रह (किसी से कोई दान न लेना)।
द्वितीय - नियम। शरीर की देखभाल, नित्य स्नान, परिमित आहार इत्यादि।
तृतीय - आसन। मेरुदण्ड के ऊपर जोर न देकर कमर, गर्दन और सिर सीधा रखना।
चतुर्थ - प्राणायाम। प्राणवायु अथवा जीवनशक्ति को वशीभूत करने के लिए श्वास-प्रश्वास का संयम।
पंचम - प्रत्याहार। मन को अन्तर्मुख करना तथा उसे बहिर्मुखी होने से रोकना, जड़-तत्त्व को समझने के लिए उस पर बार-बार विचार करना।
षष्ठ - धारणा। किसी एक विषय पर मन केन्द्रित करना।
सप्तम - ध्यान।
अष्टम - समाधि। ज्ञानालोक की प्राप्ति - हमारी समस्त साधना का लक्ष्य।
|