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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    भारत के प्रति पूर्ण प्रेम, देशभक्ति औऱ पूर्वजों के प्रति पूर्ण सम्मान रखते हुए भी मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकता कि हमें अभी बहुतसी बातें दूसरे देशों से सीखनी हैं। हम भारतेतर देशों के बिना कुछ नहीं कर सकते, यह हमारी मूर्खता थी कि हमने सोचा, हम कर सकेंगे, औऱ परिणाम यह हुआ कि हमें लगभग एक हजार वर्ष की दासता दण्ड़ के रूप में स्वीकार करनी पड़ी। हमने बाहर जाकर दूसरे देशों से अपने देश की बातों की तुलना नहीं की और जो सब कार्य हो रहे हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया- यही भारत के पतन का एक प्रधान कारण है। हम इसका दण्ड पा चुके, अब हम यही और आगे न करें।

•    दक्षिण भारत के ये कुछ प्राचीन मन्दिर और गुजरात के सोमनाथ के समान अन्य मन्दिर आपको सैकड़ों पुस्तकों की अपेक्षा कहीं अधिक प्रचुर ज्ञान प्रदान करेंगे तथा जातीय इतिहास की भीतरी बातें समझने के लिए सूक्ष्म दृष्टि देंगे। देखो, इन मन्दिरों पर किस प्रकार सैकड़ों आक्रमणों और सैकड़ों पुनरुद्धारों के चिह्न विद्यमान हैं। इन मन्दिरों का भग्नावशेषों में से सदैव उद्धार होता रहा और वे हमेशा की तरह नये औऱ सुदृढ़ बने रहे। यही है हमारे राष्ट्रीय जीवन-प्रवाह का स्वरूप।

•    आगामी पचास वर्षों के लिए हमारा केवल एक ही विचार-केन्द्र होगा- औऱ वह है हमारी महान् मातृभूमि भारत। दूसरे सब व्यर्थ के देवताओं को उस समय तक के लिए हमारे मन से लुप्त हो जाने दो। हमारा भारत, हमारा राष्ट्र–केवल यही एक देवता है जो जाग रहा है, जिसके हर जगह हाथ हैं, हर जगह पैर हैं, हर जगह कान हैं- जो सब वस्तुओं में व्याप्त है। दूसरे सब देवता सो रहे हैं। हम क्यों इन व्यर्थ के देवताओं के पीछे दौडें, और उस देवता की - उस विराट् की – पूजा क्यों न करें, जिसे हम अपने चारों ओर देख रहे हैं? जब हम उसकी पूजा कर लेंगे, तभी हम सभी देवताओं की पूजा करने योग्य बनेंगे।

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