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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    देश की आध्यात्मिक और लौकिक शिक्षा पर हमारा अधिकार अवश्य हो। क्या तुम्हारे ध्यान में यह बात आयी?....तुम्हें इस समय जो शिक्षा मिल रही है, उसमें कुछ अच्छाइयाँ अवश्य हैं, पर उसमें एक भयंकर दोष है जिससे ये सब अच्छी बातें दब गयी हैं। सब से पहली बात यह है कि उसमें मनुष्य बनाने की शक्ति नहीं है, वह शिक्षा नितान्त अभावात्मक है। अभावात्मक शिक्षा मृत्यु से भी बुरी है।

•    भारत को छोड़ने के पहले मैंने उससे प्यार किया, औऱ अब तो उसकी धूलि भी मेरे लिए पवित्र हो गयी है, उसकी हवा भी मेरे लिए पावन हो गयी है। वह अब एक पवित्र भूमि है, यात्रा का स्थान है, पवित्र तीर्थक्षेत्र है।

•    यदि तुम अंग्रेजों या अमेरिकनों के बराबर होना चाहते हो, तो तुम्हें उनको शिक्षा देनी पडेगी और साथ ही साथ शिक्षा ग्रहण भी करनी पड़ेगी, और तुम्हारे पास अभी भी बहुतसी ऐसी बातें हैं जो तुम भविष्य में सैकड़ों वर्षो तक संसार को सिखा सकते हो। यह कार्य तुम्हें करना ही होगा।

•    भारत का पतन इसलिए नहीं हुआ कि हमारे प्राचीन नियम औऱ रीति-रिवाज खराब थे, वरन् इसलिए कि उनका जो उचित लक्ष्य है, उस पर पहुँचने के लिए जिन अनुकूल वातावरण एवं साधनों की आवश्यकता थी, उनका निर्माण नहीं होने दिया गया।

•    जब आपको ऐसे लोग मिलेंगे, जो देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हैं और जो हृदय के सच्चे हैं-जब ऐसे लोग उत्पन्न होंगे, तभी भारत प्रत्येक दृष्टि से महान् होगा। मनुष्य ही तो देश के भाग्यविधाता हैं।

•    मेरी राय में सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा ही एक बड़ा राष्ट्रीय पाप है और वही एक कारण है, जिससे हमारा पतन हुआ। कितना भी राजकारण उस समय तक उपयोगी नहीं हो सकता जब तक कि भारतीय जनता फिर से अच्छी तरह सुशिक्षित न हो जाए, उसे अच्छा भोजन फिर न प्राप्त हो औऱ उसकी अच्छी देखभाल न हो।

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