लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> सूक्तियाँ एवं सुभाषित

सूक्तियाँ एवं सुभाषित

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :95
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9602

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

345 पाठक हैं

अत्यन्त सारगर्भित, उद्बोधक तथा स्कूर्तिदायक हैं एवं अन्यत्र न पाये जाने वाले अनेक मौलिक विचारों से परिपूर्ण होने के नाते ये 'सूक्तियाँ एवं सुभाषित, विवेकानन्द-साहित्य में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।


39. (स्वामीजी ने अमेरिका में कहा) जो देश अपनी सभ्यता पर इतना अहंकार करता है, उसमें प्रत्याशित आध्यात्मिकता कहाँ है?

40. 'इहलोक' और 'परलोक' ये बच्चों को डराने के शब्द हैं। सब कुछ 'इह' या यहाँ ही है। यहाँ, इसी शरीर में, ईश्वर में जीवित और गतिशील रहने के लिए सम्पूर्ण अहन्ता दूर होनी चाहिए, सारे अन्धविश्वासों को हटाना चाहिए। ऐसे व्यक्ति भारत में रहते हैं। ऐसे लोग इस देश (अमेरिका) में कहॉ है? तुम्हारे प्रचारक स्वप्नदर्शियों के विरुद्ध बोलते हैं। इस देश के लोग और भी अच्छी दशा में होते, यदि कुछ अधिक स्वप्नदर्शीं होते। स्वप्न देखने और उन्नींसवी सदी की बकवास में बहुत अन्तर है। यह सारा जगत् ईश्वर से भरा है, पाप से नहीं। आओ, हम एक दूसरे की मदद करें, एक दूसरे से प्रेम करें।

41. मुझे अपने गुरु की तरह कामिनी, कांचन और कीर्ति से परांग्मुख सच्चा संन्यासी बनकर मरने दो; और इन तीनों मे कीर्ति का लोभ सब से अधिक मायावी होता है।

42. मैंने कभी प्रतिशोध की बात नहीं की। मैंने सदा बल की बात की है। हम समुद्र की फुहार की बूँद से बदला लेने की स्वप्न में भी कल्पना करते हैं? लेकिन एक मच्छर के लिए यह एक बड़ी बात है।

43. (स्वामीजी ने एक बार अमेरिका में कहा) यह एक महान देश है। लेकिन मैं यहाँ रहना नहीं चाहूँगा। अमेरिकन लोग पैसे को बहुत महत्त्व टेते हैं। वे सब चीजों से बढ़कर पैसे को मानते हैं। तुम लोगों को बहुत कुछ सीखना है। जब तुम्हारा देश भी हमारे भारत की तरह प्राचीन देश बनेगा, तब तुम अधिक समझदार होगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai