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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


हालाँकि माणिक मुल्ला के बारे में प्रकाश का मत था कि 'यार, हो न हो माणिक मुल्ला के बारे में भी हिंदी के अन्य कहानीकारों की तरह नारी के लिए कुछ 'ऑबसेशन' है!' पर यह वह कभी माणिक मुल्ला के सामने कहने का साहस नहीं करता था कि वे उसका सही-सही जवाब दे सकें और जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं आज तक उनके बारे में सही फैसला नहीं कर पाया हूँ। इसीलिए मैं ये कहानियाँ ज्यों-की-त्यों आपके सामने प्रस्तुत किए देता हूँ; ताकि आप स्वयं निर्णय कर लें। इसका नाम 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' क्यों रखा गया इसका स्पष्टीकरण भी अंत में मैंने कर दिया है।

हाँ, आप मुझे इसके लिए क्षमा करेंगे कि इनकी शैली में बोलचाल के लहजे की प्रधानता है और मेरी आदत के मुताबिक उनकी भाषा रूमानी, चित्रात्मक, इंद्रधनुष और फूलों से सजी हुई नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि ये कहानियाँ माणिक मुल्ला की हैं, मैं तो केवल प्रस्तुतकर्ता हूँ, अत: जैसे उनसे सुनी थीं उन्हें यथासंभव वैसे ही प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ।

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