ई-पुस्तकें >> श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई) श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
अम्बे भक्ति भाव उर धारी।
निस दिन भजत तुमहिं गिरिधारी।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सव सत्रु संहारी।।
जय जय जय गिरिराज कुमारी।
जाकर नाम जपत त्रिपुरारी।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सब सत्रु संहारी।।
परम भाव पूजत दिन राता।
सुरपति नाम जपत तव माता।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सब सत्रु संहारी।।
अति प्रचण्ड भुजदण्डनिवारे।
दैत्य दर्प बल में सब हारे।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सब सत्रु संहारी।।
निस दिन भजत तुमहिं गिरिधारी।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सव सत्रु संहारी।।
जय जय जय गिरिराज कुमारी।
जाकर नाम जपत त्रिपुरारी।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सब सत्रु संहारी।।
परम भाव पूजत दिन राता।
सुरपति नाम जपत तव माता।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सब सत्रु संहारी।।
अति प्रचण्ड भुजदण्डनिवारे।
दैत्य दर्प बल में सब हारे।।
रूप देहि जय दे महतारी।
यश दे मां सब सत्रु संहारी।।
अम्बे निज भगतनि सदा, आनन्दति दुखहारि।
जय दे यश दे रूप दे, माता सत्रु संहारि।।७।।
मनोरमा पत्नी मिले, चले चित्त अनुसार।
उत्तम कुल की, जो करे, भवसागर से पार।।८।।
पहिले पढ़ स्तोत्र पुनि चण्डी चरित उदार।
सप्तसती जप फल मिले, सम्पत्ति मिले अपार।।९।।
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