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श्रीकृष्ण चालीसा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9655

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श्रीकृष्ण चालीसा


दुर्योधन के मन में आया,
पाँडवों के संग कपट कमाया।
लाक्षा गृह इक त्यार कराकर,
उसके बीच में उन्हें फंसाकर।।31।।

बाहर से उसे आग लगाई,
भस्म होये जिमि पांडव भाई।
प्रभो। आपने की चतुराई,
लाक्षा ग्रह से सुरंग बनाई।।32।।

जय पाँडू सुत तारन हारे,
जय दुष्टों को मारन हारे।
जय जय जगन्नाथ सुखरासी,
जय अखंड अतुलित अविनाशी।।33।।

जय जय वेद पुराण बुलावें,
जय जय ऋषी मुनी जन गावें।
जय जय हुंडी तारण वाले,
जय नरसी दुःख टारन वाले।।34।।

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