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श्रीकृष्ण चालीसा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9655

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श्रीकृष्ण चालीसा


विदुर भगत के जब घर आये,
उसकी पत्नी पत्र खिलाए।
विदुर भगत ने आकर रोका,
कदली छाल देने से टोका।।35।।

इस प्रकार तब आप उच्चारे,
प्रेमी भक्त मुझे हैं प्यारे।
लगी मुझे है छाल प्यारी,
और गिरी की चाल न्यारी।।36।।

जय जय प्रेमभाव के प्यारे,
जय जय आदि अन्त से न्यारे।
जय जय विश्वबन्धु जगपालक,
जय जगपिता यशोदा बालक।।37।।

जय जय सूरदास के प्यारे,
जय आनन्द घनश्याम मुरारे।
जय जय मोर मुकुट के धारी,
जय पीताम्बर सहित मुरारी।।38।।

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