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हौसला
हौसला
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
'हौसला' क्यों?
अनेक अवसरों पर निःशक्त प्राणियों को देखकर मन में उनके प्रति दया की भावना उत्पन्न होती। जिला रैडक्रास सोसायटी रोहतक से घनिष्ट सम्बन्ध होने के कारण, विकलांग कैम्पों में, इनके खेलों में, इनके साथ बातचीत करके, छोटी-बड़ी सहायता करके, मन प्रफुल्लित होता परन्तु कभी इनके मन को समझने का अवसर नहीं मिला। कभी-कभी टी॰वी. पर कैलाश मानव जी की तन मन और धन से सेवा भावना देखकर प्रेरणा मिलती, स्वामी चेतन्य स्वामी जी, जन सेवा संस्थान रोहतक में जाकर अपंग व मानसिक विकलांग व्यक्तियों की सेवा देखने का अवसर मिला। प्रत्येक बार सुखद आश्चर्य होता कि इन व्यक्तियों को, जिन्हें कोई परिवार में भी नहीं संभाल सकता उन व्यक्तियों को स्वामी जी ने अपने परिवार से अधिक प्यार दिया। पिछले दिनों साहित्यकार श्री राजकुमार निजात का एक प्रस्ताव आया। वे विकलांग जीवन से सम्बन्धित लघुकथाओं का संकलन तैयार कर रहे थे। अत: उन्होंने अपंग जीवन से सम्बन्धित लघुकथाएं भेजने के लिए कहा। यह विषय मेरे लिए अछूता था शिक्षा जगत पर मैंने अनेक लघुकथाएँ लिखी परन्तु विकलांग जीवन पर, वो भी दस लघुकथाएँ, मुझे यह कार्य अभिनव और चुनौतीपूर्ण लगा। चिंतन किया और लघुकथाएं लिखनी आरम्भ की। पचीस लघुकथाएँ लिखने के बाद ये विषय मन में बस गया। निःशक्त प्राणियों से अपनापन घनिष्ट हो गया। कुछ ही दिनों में इक्यावन लघुकथाएँ पूरी हो गयी। वरिष्ठ लघुकथाकार श्री अशोक भाटिया से संकलन की चर्चा हुई तो उन्होंने भी श्रमसाध्य कार्य करके भूमिका तैयार कर दी।
मित्रों मैं मानता हूँ इस संकलन में सभी लघुकथाएं विधा के मापदण्डों पर पूरी न भी उतरें परन्तु इन लघुकथाओं में मुझे अपने आपको इन निःशक्त प्राणियों के समीप लाने का अवसर मिला यह मेरे लिए बहुत सुखद अनुभूति है।
- मधुकांत
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