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हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

भिखारी कौन


'क्यों बे लंगड़े कहाँ गायब हो गया था?' दिन ढलते ही पास आकर सिपाही ने डण्डा ठोंका।

'हौलदार साहब, खोली में बीमार पड़ा था, अपनी मुट्‌ठी को अंटी में ठोकते हुए उसने बताया।'

'साले बीमारी में तो भीख और भी ज्यादा मिलती है....। रोज आया कर। अपनी नहीं तो कुछ हमारे धंधे की सोच लिया कर.... ला निकाल आज का धंधा पानी' - उसने रोबदार शब्दों में कहा।

'साहब अभी तो मेरी रोटियां की जुगत भी नहीं हुई- विनम्रता पूर्वक कहा।'

'साले को बंद कर दिया तो नानी याद आ जाएगी...'।

'एक मिनट ठहर'- कहता हुआ वह सामने आते सेठनुमा आदमी की ओर बढ़ा और हाथ फैला दिए।

'नोट को मसलता हुआ वह फिर पीपल के पास आ गया।

'ला, अब तो निकाल'।

भिखारी के सामने एक हाथ फैल गया तथा दूसरे बीमार हाथ ने उस पर एक नोट रख दिया।

 

० ० ०

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