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कामायनी

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :177
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9700

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जयशंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना


सूखें, झड़ें और तब कुचले सौरभ को पाओगे,
फिर आमोद कहां से मधुमय वसुधा को लाओगे,

सुख अपने संतोष के लिए संग्रह-मूल नहीं है,
उसमें एक प्रदर्शन जिसको देखें अन्य, वही है।

निर्जन में क्या एक अकेले तुम्हें प्रमोद मिलेगा?
नहीं इसी से अन्य हृदय का कोई सुमन खिलेगा।

सुख-समीर को पाकर, चाहे हो वह एकांत तुम्हारा,
बढ़ती है सीमा संसृति की बन मानवता-धारा।''

हृदय हो रहा था उत्तेजित बातें कहते-कहते,
श्रद्धा के थे अधर सूखते मन की ज्वाला सहते।

उधर सोम का पात्र लिये मनु, समय देखकर बोले-  
''श्रद्धे! पी लो इसे बुद्धि के बंधन को जो खोले।

वही करूंगा जो कहती हो सत्य, अकेला सुख क्या!
यह मनुहार! रुकेगा प्याला पीने से फिर मुख क्या?''

आंखें प्रिय आंखों में, डूबे अरुण अधर थे रस में
हृदय काल्पनिक-विजय में सुखी चेतनता नस-नस में।

छल-वाणी की वह प्रवंचना हृदयों की शिशुता को,
खेल खिलाती भुलवाती जो उस निर्मल विभुता को,

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