ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
“शायद नहीं हुई। पेनफुल सत्य का एक उदाहरण लीजिए। मान लीजिए कि 'क' 'ख' से प्रेम करता है। उनका प्रेम एक तथ्य है : आप बड़ी आसानी से कह सकते हैं कि 'क' 'ख' से प्रेम करता है-आपका अपना कोई लगाव 'क' 'ख' से नहीं है इसीलिए। अब कल्पना कीजिए उस स्थिति की जिसमें अपनी ओर से यह बात कहनी हो। 'क' 'ख' से प्रेम करता है यह कह देना कितना आसान है, और 'मैं तुम से प्रेम करता हूँ' यह कह पाना कितना कठिन-कितना पेनफुल। क्योंकि एक तथ्य है, दूसरा सत्य - और सत्य; न कहना आसान है, न सहना आसान है।” भुवन साँस लेने के लिए तनिक-सा रुका और फिर बोला, “अंग्रेजी की कविता है, 'द पेन आफ़ लविंग यू इज़ आल्मोस्ट मोर दैन आइ कैन बेयर'-तुम्हारे प्रेम की व्यथा दुस्सह है। बड़ी सच बात है, ज़रूर दुस्सह होगी, और ज़रूर व्यथा होगी-अगर सचमुच प्रेम है।”
चन्द्र ने कुछ ठट्ठे के स्वर में कहा, “तब तो सत्य भी खतरनाक चीज़ है, और प्रेम भी। लेकिन ऋषि लोग सत्य को साध्य बता गये, प्रेम को धोखा।”
रेखा ने कहा, “वे लोग कदाचित् ऋषि न रहे होंगे मिस्टर चन्द्र; प्रेम को धोखा रोमांटिकों ने बताया है, और आप कितने भी ऋषि-भक्त क्यों न हों रोमांटिक ऋषि को नहीं पसन्द करेंगे। मैं तो यही जानती थी कि ऋषियों ने प्रेम और सत्य को एक माना है क्योंकि दोनों को ईश्वर का रूप माना है।”
“क्योंकि दोनों स्रष्टा हैं,” भुवन ने जोड़ दिया। और फिर सहसा न जाने क्यों, उसे अपने बोलने पर और सारी बातचीत पर एक अज़ब-सी झिझक हो आयी : वह कैसे इतना बोल गया, और सो भी प्रेम का विषय लेकर? उसे याद आया, अंग्रेजी का जो काव्य-पद उसने सुनाया था, वह वास्तव में यों आरम्भ होता था, 'डीयरेस्ट, द पेन आफ लविंग यू', पर उद्धरण देते समय उसे यह भी ध्यान न हुआ था कि वह कोई शब्द छोड़ रहा है। सत्य की चर्चा में प्रेम की बात ले आना और ऐसे सन्दर्भ देना - रेखा क्या सोचेगी कि इन प्रोफ़ेसर साहब के दिमाग़ में प्रेम भरा हुआ है। और सृजन - क्या-क्या बक गया वह...।
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