ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
जिस दिन पहली बार स्टेशन जाने का निश्चय हुआ था, उस दिन भोजन के लिए बाहर जाने से पहले रेखा चन्द्रमाधव के यहाँ भी आयी थी, तय हुआ था कि वहीं से साथ बाहर चला जाएगा। घर पर अधिक बातचीत नहीं हुई, क्योंकि भुवन सामान ठीक-ठाक करने में कुछ व्यस्त था, और चन्द्र को डिनर के लिए तैयारी करनी थी। डिनर उसने कार्लटन में ठीक किया था, और वहाँ जाने के लिए उसका कहना था कि वेश की ओर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। यों उसे कपड़े की कोई परवाह नहीं है, पर प्रमुख दैनिक के विशेष संवाददाता के नाते उसे सब करना ही पड़ता है - यों लोग पत्रकार को कुछ नहीं बताते पर उसके रंग-ढंग से यह लगे कि उसकी अच्छे समाज में पहुँच है, तो बहुत से लोग इसीलिए कुछ बताने को राजी बल्कि आतुर हो जाते हैं कि किसी दूसरे ने तो बताया ही होगा! और अच्छे जर्नलिस्ट का काम यही है कि सबको यह इम्प्रेशन दे कि आप जो बता रहे हैं, वह वास्तव में दूसरों से उसे पता लग चुका है, फिर भी आप का बताना और चीज़ है। क्यों और चीज़ है, उसके अलग कारण हो सकते हैं - एक तो यह पत्रकार पर आपके विश्वास का सूचक है - और वह कृतज्ञ है कि आपने उसे विश्वास दिया, या वह प्रसन्न है कि आपने उसकी पात्रता को पहचाना। दूसरे बात जानना एक चीज़ है और प्रामाणिक ढंग से जानना दूसरी चीज़ - आप के बताने में वह प्रामाणिकता है। प्रश्न सारा यही है कि किस व्यक्ति को कितना 'फ्लैटर' करना उचित है-आज उसका जो पद है उसे ध्यान में रखते हुए, या कल उससे जो काम निकालना है उसे देखते हुए। पम्प करके बात निकालने के लिए उसी अनुपात में पम्प से फूँक भरना भी तो होगा - यह पंजाबी मुहावरा कितना मौजूँ है! और आपकी चाटुकारिता को कोई कितना सीरियसली ले, यह आपकी पोशाक पर निर्भर है - अगर आप अच्छे कपड़े पहने हैं तो आपकी की हुई प्रशंसा ठीक है और स्वीकार्य है, आप पारखी पत्र-प्रतिनिधि हैं; अगर रद्दी कपड़े पहने हैं तो वह काम निकालने के लिए की गयी झूठी खुशामद है, आप टुटपुँजिये रिपोर्टर हैं और तिरस्कार का पूरा नुस्खा सुन लिया था। बल्कि इसी पैंकिग में उसे देर हुई। फिर भी वह जैसे-तैसे आकर रेखा के पास बैठ गया था।
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