ई-पुस्तकें >> नदी के द्वीप नदी के द्वीपसच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय
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व्यक्ति अपने सामाजिक संस्कारों का पुंज भी है, प्रतिबिम्ब भी, पुतला भी; इसी तरह वह अपनी जैविक परम्पराओं का भी प्रतिबिम्ब और पुतला है-'जैविक' सामाजिक के विरोध में नहीं, उससे अधिक पुराने और व्यापक और लम्बे संस्कारों को ध्यान में रखते हुए।
“आप मेरी चिन्ता न कीजिए; मैं प्रतीक्षा करने की आदी हूँ और यहाँ तो बहुत-सी दिलचस्प चीज़ें बिखरी हैं।” रेखा ने एक पुस्तक उठाते हुए कहा, “पीटर चेनी मैंने पढ़ा नहीं, सुना है बड़ी दिलचस्प कहानियाँ लिखता है।”
“जी हाँ। चन्द्र से सुना होगा आपने। या कि आप फौज़दारी अदालत की रिपोर्टरी की उम्मीदवार हैं?”
रेखा ने हँस कर किताब रख दी। भीतर से चन्द्रमाधव ने पुकारा, “मेरी साहित्यिक रुचि की बुराई कर रहे हो भुवन? लेकिन पीटर चेनी क्यों बुरा है? पीटर चेनी पढ़ने वाले कम-से-कम दूसरों की नुक्ताचीनी तो नहीं करते, अपने में खुश रहते हैं। और तुम्हारे साहित्य पढ़नेवाले सुपीरियर लोग - सब को हिकारत की नजर से देखते हैं। दोनों में कौन अच्छा है, रेखा देवी? कौन-सा दृष्टिकोण स्वस्थ है?”
“ठीक है, मिस्टर चन्द्र, आपका दृष्टिकोण कलाकार का दृष्टिकोण है - सर्व-स्वीकारी। आपके मित्र आलोचक हैं - आलोचना तो रचनाशक्ति की मृत्यु का दूसरा नाम है।”
भुवन ने फिर चौंक कर रेखा की ओर देखा। क्या वह चन्द्रमाधव पर हँस रही है? क्यों? या कि दोनों पर ही हँस रही है? रेखा ने उसकी भौंचक मुद्रा को लक्ष्य किया और सहसा हँस दी, “आप ठीक सोच रहे है डाक्टर भुवन; मैं सिर्फ हँसी कर रही थी।”
भुवन ने पूछना चाहा, लेकिन किस की? या किस-किस की? पर कुछ बोला नहीं।
चन्द्रमाधव ने बाहर आकर टाई सीधी करते हुए कहा, “अब मैं सब तरह तैयार हूँ-रेडी फॉर एनीथिंग।”
रेखा ने फिर चमकती आँखों से कहा, “हाँ, पीटर चेनी के एक दृश्य के लिए भी।”
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