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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'क्या?' संध्या ने सामने खड़े एक वृद्ध की ओर देखते हुए पूछा।

'अपाहिजों, भिखारियों की टोली का सरदार है - उन्हें हर चौक पर बिठाने की कमीशन लेता है कि पुलिस वाले तंग न करें।'

संध्या ने एक लंबी साँस भरी।

'पगली यह अनोखी दुनिया है। धीरे-धीरे सब समझ जाओगी... आओ तुम्हारा परिचय करा दूँ-'जॉन डले' पाशा ने ऊँचे स्वर में पुकारा।

नन्हें पाशा को झुककर सलाम करते हुए एक व्यक्ति उनके सामने आ खड़ा हुआ - सिर पर फटा-पुराना हैट और किसी कबाड़ी से लिया पुराना डिनर सूट पहने वह इन भिखारियों में एक काला अंग्रेज दिखाई देता था।

'हैलो जॉन - तुम्हारा ज्योतिष क्या कहता है?'

'एक तूफान आने वाला है', जॉन ने संध्या की ओर देखते हुए कहा।

'कहाँ?'

'तुम्हारी सराय में - बहुत बड़ा तूफान - इंकलाब-’

'कौन लाएगा?' नन्हें पाशा ने मुस्कुराते हुए पूछा।

'यह मैडम-’ उसने संध्या की ओर देखते हुए उत्तर दिया।

उसकी यह बात सुनकर पाशा खिलखिलाकर हंसने लगा जैसे उसकी यह बात बड़ी अनोखी लगी हो। जॉन उसे हंसते देखकर झेंपकर एक ओर हो गया।

'तुम एक तूफान लाओगी - मेरी सराय में - यह ईसाई का बच्चा अपने-आपको ज्योतिषी जताकर बम्बई में आए यात्रियों की जेबों से चांदी खींचता है।' पाशा ने सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए संध्या को संबोधित करते हुए कहा।

'यह भी तो एक धंधा है मामा!'

'हाँ बेटा - अपने को जीवित रखना भी एक धंधा है।'

'परंतु यों कीड़े-मकोड़ों की भांति जीने से मर जाना ही अच्छा है', उसने कुछ गंभीर स्वर में उत्तर दिया।

'सुंदर - पर यह विचार इन कीड़े-मकोड़ों में मत फैलाना वरना ये अपनी चाल छोड़कर हवा में उड़ने लगेंगे - फिर जानती हो क्या होगा?'

'क्या होगा?' उसके स्वर में दृढ़ता थी।

'धरती पर औंधे आ गिरेंगे क्योंकि इनके भाग्य में रेंगना ही है।'

'तो मैं इनका भाग्य बदल दूंगी - इन्हें पर देकर उड़ना सिखाऊँगी।'

'तो जॉन डले ठीक कहता है - यह मैडम इंकलाब लाएगी।' कहकर वह फिर हंसने लगा। इस हंसी में भयानकता थी।

संध्या ने कहवे का खाली प्याला चबूतरे पर रख दिया और धीरे-धीरे पांव उठाती हॉल में बैठे लोगों की ओर बढ़ी। खाना बीबी और नन्हें पाशा चुपचाप उसे देखते रहे।

आगे बढ़कर उसने सबको एक स्थान पर एकत्र होने का संकेत किया और जब वे उसके गिर्द जमघट बनाकर खड़े हो गए तो ऊँचे स्वर में उनको संबोधित कर बोली-'मैं तुम लोगों का भाग्य बदल देना चाहती हूँ।'

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