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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

सब आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे जैसे किसी ने विचित्र और अनहोनी बात कह दी हो। वे सब आपस में खुसर-फुसर करने लगे - मौन एक समझ न आने वाले अधूरी रागिनी में बदल गया। वह फिर बोली-

'तुम लोगों को क्या चाहिए?'

'पेट भर रोटी-’ उनमें से एक बोला।

'हाँ-हाँ दो समय रोटी। हम भी इंसान हैं।' सबने दोहराते हुए यह कहा। 'तो अपने को पहचानने का प्रयत्न करो - इंसानों की भांति जीना सीखो।' 'परंतु कैसे?' एक ने आगे बढ़ते हुए पूछा।

'इंसानियत के मार्ग पर चलकर - आओ मैं तुम सबको एक नया पथ दिखाती हूँ जहाँ रोटी, कपड़ा, मकान सबको एक समान मिलेगा - क्या तुम इस पथ पर मेरा साथ दोगे?'

'अवश्य!' हॉल लोगों की आवाज से गूंज उठा, जैसे सचमुच सबको कोई

संभालने वाला मिल गया हो।

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