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परिणीता
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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।
शेखर ने सिर उठाकर कहा--ललिता तो साँवली है माँ, वह उससे गोरी है।
माँ -- आँखें कैसी हैं? चेहरा कैसा है?
शेखर- यह सब भी बुरा नहीं है।
माँ- तो फिर उनसे कह दूँ कि बातचीत पक्की कर लें? अब की शेखर कुछ न बोला। क्षण भर बेटे के मुँह की ओर ताकते रहकर एकाएक माँ पूछ बैठी- हाँ रे शेखर, लड़की पढ़ी-लिखी भी है? कहाँ तक शिक्षा पाई है? शेखर ने कहा- यह कुछ तो मैंने पूछा नहीं माँ।
बहुत ही विस्मय के साथ माता ने कहा- पूछा क्र्यों नहीं? आजकल तुम लोगों की नजर में जो बात सबसे बढ़कर जरूरी है, वही पूछना तू कैसे भूल गया?
शेखर ने हँसकर कहा-माँ, सच कहता हूँ, इसका ख्याल ही मुझे नहीं आया।
लड़के का उत्तर सुनकर अब की भुवनेश्वरी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। क्षण भर पुत्र के मुँह की ओर ताककर उन्होंने हँसकर कहा- तो तू वहाँ ब्याह नहीं करना चाहता, यह क्यों नहीं कहता? शेखर इसके उत्तर में कुछ कहनेवाला ही था कि इतने में ललिता आ पहुँची। उसे देखकर वह चुप हो गया। ललिता धीरे-धीरे आकर भुवनेश्वरी के पीछे खड़ी हो गई। उन्होंने बायें हाथ से ललिता को सामने की ओर खींचकर कहा- क्यों बेटी?
ललिता ने धीमे स्वर में कहा- कुछ नहीं अम्मा।
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