लोगों की राय
ई-पुस्तकें >>
परिणीता
परिणीता
|
5 पाठकों को प्रिय
366 पाठक हैं
|
‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।
शेखर ने माँ के मुँह की ओर देखकर हँसकर कहा- अच्छी है।
शेखर की माँ का नाम था भुवनेश्वरी। अवस्था 50 के लगभग होने पर भी उनकी काठी ऐसी अच्छी थी कि देखने में 35-36 वर्ष से अधिक अवस्था नहीं जान पड़ती थी। उनके शरीर के अंग-प्रत्यंग सुडौल, सुन्दर और सुदृढ़ थे। इस सुन्दर आवरण के भीतर जो माता का हृदय था वह और भी तरुण और कोमल था। वे गाँव की लड़की थीं। देहात में जन्म लेकर वहीं बड़ी हुई थीं अवश्य, लेकिन जब शहर में ब्याह कर आईं तब वहाँ के लोगों में भी वे खूबी के साथ खप गईं - एक दिन के लिए भी किसी बात में उनका देहातीपन नहीं देख पड़ा। उनमें शहरवाली औरतों से कम शऊर, शिष्टाचार या सौजन्य न था। एक ओर शहर की फुर्ती, खुशमिजाजी, जिंदादिली और चाल- ढाल को उन्होंने जैसे आते ही अपना लिया, वैसे ही दूसरी ओर अपनी जन्मभूमि की सादगी, सरलता, सच्चाई और मधुर वाणी आदि की विशेषताएँ भी नष्ट नहीं होने दीं।
यह माता शेखर के लिए कितने बड़े गर्व और गौरव की चीज थी इसका पूरा-पूरा ज्ञान स्वयं उसकी माता को भी न था। परमात्मा ने शेखर को सभी कुछ दिया था, अनेक सौभाग्य-सुलभ दुर्लभ वस्तुएँ और विशेषताएँ उसे प्राप्त थीं। असाधारण सम्पूर्ण स्वास्थ्य, रूप, ऐश्वर्य, सुख, विद्या, बुद्धि आदि का वह अधिकारी था। किन्तु इस माता की सन्तान होने के सौभाग्य को ही वह भगवान् का सर्वश्रेष्ठ दान मानकर मन, वाणी, काया से उनका कृतज्ञ था।
माँ ने कहा-'अच्छी है' कहकर तू तो चुप हो गया! शेखर ने फिर हँसते हुए सिर झुकाकर कहा-तुमने जो पूछा वही बतला दिया मैंने माँ! और क्या कहता?
सुनकर माँ ने भी हँस दिया। फिर कहा-मैंने जो कुछ पूछा था वह सब अच्छी तरह से कहाँ बतलाया! रंग कैसा है- गोरा है? किसकी तरह है, हमारी ललिता की तरह?
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai