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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


तब ललिता ने और जरा ऊँचे स्वर में कहा- सब लोग मेरे लिए खड़े मेरी राह देख रहे होंगे।

अबकी शेखर ने सुन लिया। किताब को एक तरफ रखकर उसने पूछा- क्या हुआ-क्या कहती हो?

ललिता ने कुछ रूठकर कहा- इतनी देर में अब, जान पड़ता है, सुन पड़ा? हम लोग आज थियेटर देखने जा रहे हैं।

शेखर ने कहा- हम लोग के माने? कौन लोग?

मैं, अन्नाकाली, चारुबाला, उसका भाई, उसका मामा-''

शेखर-- उसका मामा कौन?

ललिता- उनका नाम गिरीन्द्र बाबू है। 5-6 दिन हुए, अपने घर मुँगेर से यहाँ आये हैं। यहीं, कलकत्ते में, रह कर बी० ए० में पढ़ेंगे। बड़े अच्छे आदमी हैं।

शेखर बीच ही में कह उठा-- वाह! नाम, पता, पेशा, सब मालूम कर लिया तुमने तो! देख पड़ता है, इतने ही में खूब हेलमेल हो गया है। इसीलिए चार-पाँच दिन से तुम गायब रहती हो। जान पड़ता है, ताश खेला करती हो?

अचानक शेखर के बात करने का ढंग बदला हुआ देखकर ललिता डर गई। उसे खयाल भी न था कि इस तरह का प्रश्न उठ सकता है। वह चुप हो रही।

शेखर ने फिर पूछा – इधर कई दिन से ताश का खेल होता था – क्यों?

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