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परिणीता

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :148
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9708

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‘परिणीता’ एक अनूठी प्रणय कहानी है, जिसमें दहेज प्रथा की भयावहता का चित्रण किया गया है।


ललिता ने संकुचित होकर धीरे से अपनी लाचारी जताते हुए, संकोच के स्वर में कहा – चारु के कहने....

''चारु के कहने से? क्या कहने से?'' कहते हुए शेखर ने एक बार सिर उठाकर ललिता की ओर देखा। फिर कहा- एक दम कपड़े-लत्ते से लैस होकर आई हो- अच्छा, जाओ।

लेकिन ललिता नहीं गई--वहीं चुपचाप खड़ी ही रही।

चारुबाला का घर ललिता के घर के पास ही है। चारु उसकी बहनेली है। दोनों हमजोली हैं। चारु के चरवाले ब्रह्मसमाजी हैं। इस गिरीन्द्र के अलावा चारु के घर के सभी आदमी शेखर के परिचित हैं। 5-7 साल हुए, गिरीन्द्र कुछ दिन के लिए एक बार यहाँ आया था। अब तक वह बाँकीपुर में पढ़ता था- कलकत्ते आने का न प्रयोजन ही हुआ, और न वह आया ही। इसी कारण शेखर उसे जानता-पहचानता न था।

ललिता को फिर भी खड़े देखकर- ''बेकार क्यों खड़ी हो, जाओ'' कहकर शेखर ने फिर किताब खोल, ली, और पढ़ना शुरू कर दिया।

पाँच मिनट के लगभग चुप रहने के बाद ललिता ने फिर धीरे से पूछा- जाऊँ?

''जाने ही को तो कह चुका हूँ ललिता।''

शेखर का रँग-ढँग देखकर ललिता के मन से थियेटर देखने का उत्साह उड़ गया, लेकिन बात ऐसी थी कि गये बिना भी न बनता था।

तय यह हुआ था कि आधा खर्च चारु का मामा देगा, और आधा ललिता देगी।

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