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परसाई के राजनीतिक व्यंग्य

हरिशंकर परसाई

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :296
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9709

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राजनीतिक विषयों पर केंद्रित निबंध कभी-कभी तत्कालीन घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए अपने पाठ की माँग करते हैं लेकिन यदि ऐसा कर पाना संभव न हो तो भी परसाई की मर्मभेदी दृष्टि उनका वॉल्तेयरीय चुटीलापन इन्हें पढ़ा ले जाने का खुद में ही पर्याप्त कारण है।

अमेरिका में महान राष्ट्रपति भी हुए हैं और साधारण तथा घटिया भी। जार्ज वाशिंगटन, जेफरसन, लिंकन जैसे महान राष्ट्रपति हुए तो कम ऊँचाई के और मूढ़ भी।

दूसरे महायुद्ध के बाद जनरल आइसन हावर राष्ट्रपति हुए। दूसरे महायुद्ध के बाद हमारे देश के वाइसराय भी एक जनरल लार्ड वेवेल बनाए गए थे। अधिकतर जनरल युद्ध का संचालन अच्छा करते हैं, पर कूटनीति, राजनैतिक ज्ञान में कमजोर होते हैं। लार्ड वेवेल गाँधीजी से बात करते हुए बहुत घबराता था। उसके सचिव ने अपनी डायरी में लिखा है कि गाँधीजी के मिलने आने की सूचना पर लार्ड वेवेल पत्ते की तरह काँपने लगता था। वह गाँधीजी के तर्कों से परेशान हो जाता था। एक बार काफी देर बातचीत के बाद वेवेल ने स्वीकार किया- मिस्टर गाँधी मैं सिपाही हूँ वकील नहीं।

गाँधीजी ने कहा- मैं दोनों हूँ। वकील भी और सिपाही भी।

वेवेल ने कहा - आप क्या चाहते हैं, पाँच वाक्यों में लिख दीजिए।

गाँधीजी ने पाँच वाक्य लिख दिए। वेवेल ने पढ़े और बोला - ठीक है। अब मैं समझ गया। आधी रात को उसने सचिव को बुलाया और कहा- यह अधनंगा फकीर गाँधी मुझे बुद्धू बना गया। ये पाँच वाक्य ठीक मालूम होते हैं। पर हर वाक्य दूसरे को काटता है।

अमेरिका में राष्ट्रपति को बहकानेवाले दो संगठन हैं- सी.आई.ए. और पेंटागन। इनके बहकावे में आकर आइसनहावर ने यू-2 जासूसी विमान रूस पर भेज दिया। रूस ने उसे ऐसे गिरा लिया कि चालक मेरी पावर्स मरा नहीं। तब निकिता कुश्चेव प्रधानमंत्री थे। कुश्चेव ने जो सुधार रूस की व्यवस्था में शुरू किए थे, वे आगे होते जाते तो सोवियत संघ में वह विस्फोट न होता तो गोर्वाचेव के समय में हुआ। पर स्टालिनवादी ब्रेझनेव ने उन्हें हटा दिया। कुश्चेव बहुत नाटकीय और बहुत मुँहफट थे। उन्होंने यू-2 जासूस विमान भेजने पर आइसनहावर पर कटाक्ष किया कि लोगों ने ऐसे आदमी को एक देश का राष्ट्रपति बना दिया। यह तो किंडरगार्डन स्कूल का हेडमास्टर होने के लायक है।

राष्ट्रसंघ में बोलते हुए भी कुश्चेव ने बिना नाम लिए आइसनहावर पर अपमानजनक कटाक्ष कर दिया। वहाँ अमेरिका के प्रतिनिधि आर.एल. स्टीवेंसन ने अध्यक्ष से एतराज किया- ये हमारे राष्ट्रपति का अपमान कर रहे हैं।

कुश्चेव ने फौरन जवाब दिया- अध्यक्ष महोदय, मैंने इनके राष्ट्रपति का नाम तक नहीं लिया। और ये कहते हैं कि मैंने उनका अपमान किया।

इससे मुझे एक रूसी चुटकुला याद आ गया जो मैंने कभी सुना था। जब रूस में जार का शासन था, रेलगाड़ी के एक डब्बे में दो किसान बैठे थे। एक किसान ने दूसरे से कहा- जार बेवकूफ है।

फौरन पास बैठे पुलिसवाले ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा- तुम्हारी इतनी हिम्मत कि हमारे जार को बेवकूफ कहो।

दूसरे किसान ने बात सँभालने के लिए कहा- उसका मतलब जर्मन जार से है।

सिपाही ने कहा- मुझे मूर्ख मत बनाओ। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कोई बेवकूफ है तो वह हमारा जार है। इसी तरह ये कहते हैं कि इनके राष्ट्रपति का मैंने अपमान किया।

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