ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
“उठिए, दिन बहुत बीत गया।”
अपूर्व आंखें मलकर उठ बैठा। देखकर बोला, “तीन-चार घंटे हो गए, मुझे जगा क्यों नहीं दिया?”
“जाइए, हाथ-मुंह धो आइए। सरकार जी जलपान की थाली ले आए हैं।”
नीचे से हाथ-मुंह धोकर आने के बाद अपूर्व जलपान करके सुपारी-इलायची आदि मुंह में रखकर बोला, “अब मुझे छुट्टी दीजिए। मैं अपने डेरे पर जाऊं।”
भारती बोली, “यह नहीं होगा। तिवारी को मैंने सूचना पहुंचा दी है, वह घर पर स्वस्थ है। कोई चिंता नहीं। आज सुमित्रा देवी अस्वस्थ हैं, नवतारा अतुल बाबू को लेकर उस पार गई है। आप मेरे साथ चलिए। आपके लिए प्रेसीडेंट का यही आदेश है। यह धोती मैंने ला दी है। उसे आप पहन लीजिए।”
“कहां जाना होगा?”
“मजदूरों के घर। आज रविवार के दिन वहां काम करना है।”
“लेकिन वहां किसलिए?”
भारती ने हंसकर कहा, “आप इस संस्था के माननीय सदस्य हैं। निश्चित स्थान पर न जाने से काम का ढंग नहीं समझ पाएंगे।”
“चलिए,” अपूर्व तैयार हो गया।
अलमारी से एक चीज निकालकर भारती ने छिपाकर उसकी जेब में रख दी। अपूर्व बोला, “यह क्या है?”
“पिस्तौल है।”
“पिस्तौल क्यों?”
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