ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
भारती ने कहा, “फिर भी तुम लोगों को कितना कष्ट है। सोचकर देखो। जब तब अपराध के बिना ही साहब लोग तुम लोगों पर लात-जूते मारकर बाहर निकाल देते हैं। इस पास के घर की हालत देख लो। काम करते समय पंचकौड़ी का हाथ टूट गया जिसके कारण उसे खाना नहीं मिल रहा। उसके लड़के-लड़की दवा न मिलने के कारण मौत के मुंह में जा रहे हैं। बड़ा साहब उसे मकान से भी निकाल देना चाहता है। यह जो लाखों-करोड़ों रुपयों का लाभ यह लोग कर रहे हैं, यह किसकी बदौलत हो रहा है? और तुम लोगों को मिलता क्या है? अभी उस दिन की घटना है - श्यामलाल को छोटे साहब ने धकेल दिया, वह आज तक अस्पताल में पड़ा हुआ है। इस बात को तुम लोग क्यों सहोगे? एक बार सब लोग एक होकर ऊंची आवाज में कह दो कि यह अत्याचार हम लोग अब नहीं सहेंगे। फिर देखूंगी कि वह लोग तुम लोगों से और कुछ नहीं चाहते कालाचंद।”
एक शराबी इतनी देर तक अवाक्-सा होकर सुन रहा था। उसने कहा, “भैया हम क्या नहीं कर सकते? हम सब ऐसा पेंच ढीला करके रख दे सकते हैं कि धाड़-धाड़-धड़ाम बस आधा कारखाना साफ हो जाएगा।”
भारती ने भयभीत होकर कहा, “नहीं, नहीं, दुलाल, ऐसा काम कभी मत करना। इससे तो तुम्हीं लोगों की हानि होगी। हो सकता है, कितने ही लोग मर जाएं। हो सकता है...नहीं, नहीं...यह बात सपने में भी मत सोचना दुलाल। इससे बढ़कर भयानक पाप दूसरा नहीं है।”
दुलाल मतवाली हंसी हंसकर बोला, “नहीं, यह क्या मैं जानता नहीं। यह तो केवल बातचीत के सिलसिले में कह रहा हूं कि हम लोग क्या नहीं कर सकते।”
भारती बोली, “तुम लोगों को सुमार्ग में, सच्चे मार्ग में खड़ा होना चाहिए, तभी तुम कुछ कर पाओगे। तुम लोगों को बहुत रुपया पावना है। वह कौड़ी-कौड़ी करके वसूल करना होगा।”
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