ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
“मुझे गरज नहीं।”
भारती ने हाथ बढ़ाकर अपूर्व का दायां हाथ जोर से पकड़कर कहा, “मेरा स्वभाव बदलेगा नहीं अपूर्व बाबू! लेकिन आप जैसे आदमी पर नेतृत्व कर पाऊं तो और सब छोड़ सकती हूं।”
अगले दिन सुमित्रा की अध्यक्षता में फायर मैदान में जो सभा हुई उसमें उपस्थिति कम थी। जिन लोगों ने भाषण देने का वचन दिया था उनमें से भी अधिक लोग नहीं आ सके। सभा की कार्यवाई देर से आरम्भ हुई रोशनी का प्रबंध न होने के कारण सांझ होने से पहले ही समाप्त कर दी गई। सुमित्रा के भाषण के अतिरिक्त सभा में और कुछ उल्लेखनीय नहीं हुआ। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि पथ के दावेदारों के इस प्रथम प्रयास को व्यर्थ कह दिया जाए। मजदूरों में इस बात को फैलने में जिस प्रकार देर नहीं हुई उसी प्रकार मिल और कारखाने के मालिकों के कानों तक भी उक्त बातों के पहुंचने में विलम्ब नहीं हुआ। चारों ओर यह बात फैल गई कि एक बंगाली महिला विश्व-भ्रमण करती हुई बर्मा में आई है। वह जितनी रूपमयी है उतनी ही शक्तिमयी भी है। किसी की मजाल नहीं जो उनके कामों में बाधा डाल सके। साहबों का कान पकड़कर वह किस प्रकार मजदूरों के लिए सब प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करा लेंगी और उनकी मजदूरी दो गुनी करा देंगी - इन बातों को उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है। जिन लोगों को इस सभा की खबर थी और जो लोग उस दिन उनका भाषण नहीं सुन पाए उन्होंने निश्यच किया कि वह अगामी शनिवार की सभा में अवश्य भाग लेंगे।
बीस-पच्चीस कोस के दायरे में जितने भी कारखाने थे उनमें यह खबर दावाग्नि की भांति फैल गई।
सुमित्रा को बहुतों ने अभी तक नहीं देखा है, लेकिन उसके रूप और शक्ति की ख्याति जब उन लोगों तक पहुंची तब अशिक्षित मजदूरों में भी सहसा एक जागृति-सी दिखाई देने लगी। यह निश्यच हो गया कि एक दिन का नागा करके शनिवार को फायर मैदान में एक-एक मजदूर उपस्थित होगा। उसकी वाणी और उपदेशों में यदि कोई पारस पत्थर हो जिससे गरीब मजदूरों का दु:खी जीवन रातोंरात एकाएक आतिशबाजी के तमाशों की तरह चमक उठे, तो फिर जिस तरह हो सके वह दुर्लभ वस्तु उन्हें प्राप्त कर लेनी चाहिए।
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