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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


अपूर्व ने खोए-खोए से स्वर में पूछा, “आप क्या कहती हैं।”

भारती बोली, “अब आपका दिमाग ठंडा हो गया है और यथोचित सम्बोधन की भाषा याद आ गई है।”

“क्या मतलब?”

“मतलब यह कि क्रोध के कारण अब तक आप और तुम का भेद नहीं था। वह फिर लौट आया है।”

अपूर्व लज्जित होकर बोला, “आप नाराज तो नहीं हुईं?”

भारती हंसकर बोली, “हुई भी हूं तो क्या हर्ज है? चलिए।”

“तो चलूं?”

“चलोगे नहीं तो क्या मैं अंधेरे रास्ते में अकेली जाऊंगी?”

अपूर्व चल दिया। उसके अंतर में एक ज्वाला-सी धधक रही थी। उन शराबियों की बातों को वह किसी भी तरह से भूल नहीं पा रहा था। सहसा कड़े स्वर में बोला, “यह सब तो सुमित्रा का काम है। आपको वहां नेतृत्व करने के लिए जाने की क्या जरूरत है? न जाने कौन कहां क्या कर डाले। और आपको लेकर खींचातानी आरम्भ हो जाए।”

भारती बोली, “हो जाने दीजिए।”

अपूर्व बोला, “वाह रे....हो जाने दीजिए! असल बात यह है कि नेतागिरी करना आपका स्वभाव है। लेकिन और भी तो बहुत से स्थान हैं?”

“कोई दिखा दीजिए न?”

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