ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
उसी समय हंगामा मच गया। एक कोने में बहुत से लोग एक-दूसरे के साथ धक्का-मुक्की करते हुए भागने की कोशिश करने लगे। भीड़ को कुचलते-रौंदते बीस-पच्चीस गोरे पुलिस घुड़सवार तेजी से चले आ रहे थे। सभी कि हाथ में लगाम थी, दूसरे हाथ में चाबुक और कमर में पिस्तौल। जो व्यक्ति भाषण दे रहा था उसकी गरजती आवाज कब थम गई और वह मंच के नीचे भीड़ में धंसकर कहां गुम हो गया, कुछ भी समझ में नहीं आया।
गोरे घुड़सवारों का नायक मंच के निकट आया। चीखकर बोला, “मीटिंग बंद करो।”
सुमित्रा अभी तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाई थीं। उसके दुर्बल उदास चेहरे पर एक पीली छाया डोल गई। उसने जल्छी से उठकर पूछा, “क्यों?”
“आज्ञा है?”
“किसकी?”
“सरकार की।”
“किसलिए?”
“हड़ताल करने के लिए मजदूरों को भड़काना मना है।”
सुमित्रा बोलीं, “मजदूरों को बेकार भड़काकर तमाशा देखने के लिए हमारे पास समय नहीं है। यूरोप आदि देशों की तरह इन लोगों को संगठित होने की आवश्यकता को समझाना ही इस संस्था का उद्देश्य है।”
साहब चकित होकर बोला, “संगठित करना? काम के विरुद्ध? यह तो इस देश के लिए भयानक गैर कानूनी काम होगा। इससे तो निश्चित रूप से शांति भंग हो जाएगी।”
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