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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


सुमित्रा बोलीं, “हां हो सकती है। जिस देश में सरकार का अर्थ ही अंग्रेजी उद्योगपति हो और सारे देश के खून को चूसने के लिए जिन्होंने यह भयंकर यंत्र खड़ा किया हो....?”

बात पूरी भी न हो पाई कि गोरे की लाल आंखों से आग बरसने लगी। कड़ककर बोला, “फिर भी ऐसी बातें अगर मुंह से निकालीं तो मुझे आपको गिरफ्तार करना पड़ेगा।”

सुमित्रा उसकी ओर देखकर हंसकर बोली, “साहब, मैं बीमार और कमजोर हूं। नहीं तो केवल दूसरी बार ही नहीं इस बात को तो एक सौ बार चिल्ला-चिल्लाकर इन लोगों को सुना देती। लेकिन आज मुझमें वह ताकत नहीं है।” इतना कहकर वह फिर हंस पड़ीं।

उस बीमार और दुर्बल नारी की सरल-शांत हंसी के सामने साहब मन-ही-मन लज्जित हो उठा। बोला, “आलराइट, आपको सावधान किए देता हूं। मुझे मीटिंग बंद करने का आदेश है, भंग करने का नहीं। दस मिनट में इन सबको शांतिपूर्वक चले जाने को कहिए, और फिर कभी ऐसा न कीजिए।”

कई दिनों से सुमित्रा ने कुछ खाया नहीं था। सब लोगों के मना करने पर भी बुखार में ही सभा में चली आई थीं। उसने अपूर्व से कहा, “अपूर्व बाबू, केवल दस मिनट का समय और है। चिल्ला-चिल्लाकर सबको बता दीजिए कि एकजुट होने के सिवा इसका और कोई उपाय नहीं है। कारखाने के लोगों ने आज हम लोगों का जैसा अपमान किया है, अगर तुम अपने-आपको इन्सान समझते हो तो इसका बदला जरूर लेना।”

कहते-कहते उसकी कमजोर आवाज फट-सी गई।

लेकिन सभा की अध्यक्षा का ऐसा उपदेश सुनकर अपूर्व का चेहरा सूख गया। बेचैनी से सुमित्रा की ओर ताकते हुए बोला, 'उत्तेजित करना गैर-कानूनी नहीं होगा?”

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