ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
उसने पूछा, 'भैया, तुम लोगों को कुछ और दूं?”
डॉक्टर ने जेब से रूमाल निकालकर कहा, “ब्राह्मण का लड़का हूं। कुछ छन्ना बांध दो जिससे दो दिन निश्चिंत रह सकूं।”
मैला रूमाल लौटाकर भारती ने एक धुला हुआ तौलिया निकाला और खाने की तरह-तरह की चीजों की एक पोटली बांधकर डॉक्टर के सामने रखते हुए कहा, “यह है ब्राह्मण के लड़के का छन्ना और रुपयों की थैली।”
डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, “यह हुई ब्राह्मण की भोजन-दक्षिणा।”
भारती बोली, “अर्थात् तुच्छ विवाहोत्सव के सिवा सभी असली आवश्यक कार्य निर्विघ्न समाप्त हो गए।”
हंसी रोककर डॉक्टर बोले, “यह मेरे लिए भगवान का कैसा अभिशाप है भारती कि ज्यों ही हंसी आने लगती है, मेरे मुंह से ठहाकों के सिवा और कुछ नहीं निकलता। ठहाकों जैसा रोना रोने के लिए तुम्हें साथ न लाया होता तो आज मुंह दिखाना कठिन हो जाता।”
“भैया, फिर मुझे परेशान करने लगे?”
“परेशान कर रहा हूं या कृतज्ञता प्रकट कर रहा हूं।”
भारती ने रूठकर मुंह दूसरी ओर फेर लिया।
शशि चुप था। अचानक अत्यंत गम्भीरता के साथ बोला, “अगर नाराज न हो तो एक बात कह सकता हूं? कुछ लोगों को संदेह है कि आपके साथ ही एक दिन भारती का विवाह होगा।”
डॉक्टर पलभर के लिए चौंक उठे, “यह क्या कहते हो शशि? तुम्हारे मुंह पर फूल-चंदन पड़े- ऐसा सुदिन इतने बड़े अभागे के भाग्य में आएगा? यह तो सपनों से भी परे की बात है कवि।”
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