लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“तो मैं क्या करूं?”

“तुम विप्लव के गीत गाना। जहां तुमने जन्म लिया है, जहां जाति आदमी बने हो, केवल उन्हीं के लिए। केवल शिक्षित और भद्र के लिए।”

भारती विस्मित होने के साथ व्यथित भी हुई। बोली, “भैया तुम भी जाति मानते हो? तुम्हारा ध्यान भी केवल भद्र जाति की ओर ही है।”

डॉक्टर बोले, “मैंने वर्णाश्रम की बात तो कही नहीं भारती। उस बलपूर्वक बने जाति भेद की चर्चा मैंने नहीं की। यह वैषम्य मुझमें नहीं है। लेकिन शिक्षित का जाति भेद माने बिना तो मैं रह नहीं सकता। यही तो सच्ची जाति है, यही तो भगवान के हाथ की बनी हुई सृष्टि है। ईसाई होने के कारण मैं तुम्हें ठेलकर क्या अलग रख सका हूं बहिन? तुम्हारी बराबरी का मुझे अपना कहने के लिए ओर कौन है?”

भारती ने श्रद्धा भरी नजरों से उनकी ओर देखते हुए कहा, “लेकिन तुम्हारा विप्लव गान तो शशि बाबू के मुंह से शोभा नहीं देगा भैया। तुम्हारे विप्लव का गीत, तुम्हारी गुप्त समिति का....”

डॉक्टर ने उसे बीच में ही रोककर कहा, “नहीं, मेरी गुप्त समिति का भार मेरे ही ऊपर रहने दो बहिन। उस बोझ को ढोने योग्य शक्ति.... नहीं, नहीं, उसे रहने दो.... वह केवल मेरे लिए है।”तुम से तो मैं कह चुका हूं भारती विप्लव का अर्थ केवल खून-खराबा नहीं है। विप्लव का अर्थ है-अत्यधिक तीव्रता से आमूल परिवर्तन। राजनीतिक विप्लव नहीं.... वह तो मेरा ही है। कवि, तुम दिल खोलकर सामाजिक विप्लव के गीत गाने शुरू कर दो। जो कुछ सनातन है, जो कुछ प्राचीन है, जीर्ण और पुराना है-धर्म, समाज, संस्कार-सब टूट-फूटकर ध्वंस हो जाए, और कुछ न कर सको शशि तो केवल इस महासत्य का ही मुक्त कंठ से प्रचार करो कि इससे बढ़कर बड़ा शत्रु भारत का और कोई नहीं है। उसके बाद देश की स्वाधीनता का भार मुझ पर रहने दो।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book