ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
“हां, सब मिल गया तो बन जाऊंगी।”
डॉक्टर बोले, “मिल ही जाएगा। एटॉर्नी की राय के बिना कोई काम मत करना। सावधान रहना। जो तुम्हें ले जाने के लिए आए हैं वह परिचित तो हैं न?”
सुमित्रा बोली, “हां, भरोसे के आदमी हैं। मैं पहचानती हूं।”
“तब कोई बात नहीं।”
अचानक शशि बोल उठा, “यह तो बहुत बुरी बात हुई डॉक्टर। जिन तीन बंगाली महिलाओं को आपने लिया था - नवतारा गई, स्वयं प्रेसीडेंट जाने को तैयार हैं। केवल भारती....।”
डॉक्टर हंसते हुए बोले, “चिंता मत करो। भारती भी महाजनों के पंथ का अनुसरण करेगी - यह एक प्रकार से निश्चित हो चुका है।”
भारती ने गुस्से से देखा।
डॉक्टर के परिहास में छिपी व्यथा का अनुमान करके शशि ने कहा, “आपको जल्दी ही चला जाना पड़ेगा। अब तो आप देखिए कि आपके 'पथ के दावेदारों' की एक्टिविटी कम-से-कम बर्मा में तो समाप्त हो गई। इसे अब कौन चलाएगा?”
वह उसी तरह हंसते हुए बोले, “यह कैसी बात कह रहे हो कवि? इतने समय से इतना देख-सुनकर भी अंत में सव्यसाची के लिए तुम्हारे ही मुंह से यह सर्टिफिकेट? तीन महिलाएं चली जाएंगी, क्या इसीलिए 'पथ के दावेदार' समाप्त हो जाएगा? शराब छोड़ देने का क्या यही फल हुआ है? इससे तो अच्छा है कि फिर पीना शुरू कर दो।”
बात मजाक-सी सुनाई पड़ने पर भी मजाक नहीं है, यह समझ लेने पर भी भारती ठीक-ठीक नहीं समझ सकी। कनखियों से उसने बड़े ध्यान से देखा, सुमित्रा आंखें झुकाए चुपचाप बैठी है।
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