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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


डॉक्टर बोले, “तुम्हारी विचारधारा अलग ही है भारती और जिस दिन मुझे इसका पता चला, उसी दिन से मैं तुम्हें फिर से इस दल में खींच लाने में असमर्थ हो गया। मेरे मन में बार-बार यही विचार आया है कि संसार में तुम्हारे लिए यह नहीं, दूसरा काम है।”

भारती बोली, “और मुझे भी बराबर यही खयाल आता रहा है कि तुम मुझे अयोग्य समझ कर दूर हटा देना चाहते हो। अगर मेरे लिए दूसरा काम हो तो मैं उसी के लिए अभी से निकल पडूंगी। लेकिन मेरे प्रश्न का तो यह उत्तर नहीं है भैया। वास्तविक बात ही तुच्छ हो गई है। तुम्हारा अभाव जल के स्रोत के समान पूरा हो सकता है या नहीं? तुम कह रहे हो कि हो सकता है। और मैं कह रही हूं कि नहीं हो सकता। मैं जानती हूं कि नहीं हो सकता....मैं जानती हूं कि मनुष्य केवल जल का स्रोत नहीं है....तुम तो अवश्य ही नहीं हो।”

पल भर मौन रहकर उसने फिर कहा, “केवल इसी बात को जानने के लिए मैं तुम्हें परेशान न करती। लेकिन जो नहीं है। जिसे तुम स्वयं जानते हो कि वह सत्य नहीं है - मुझे उसी से फुसलाना चाहते हो?”

भारती ही ने फिर कहा, “इस देश में अब तुम्हारा ठहरना नहीं हो सकता। तुम जाने को बैठे हो। फिर तुम्हें वापस पाना कितना अनिश्चित है - यह सोचते ही हृदय में ज्वाला धधक उठती है। इसी से उसका सोच नहीं करती। फिर भी सत्य को प्रतिक्षण अनुभव किए बिना नहीं रह सकती। इस व्यथा की सीमा नहीं है। लेकिन इससे भी बढ़कर मेरी व्यथा यह है कि तुमको इस तरह पाकर भी मैं नहीं पा सकी। आज मुझे कितने प्रश्न याद आ रहे हैं भैया। लेकिन मैंने जब भी उन प्रश्नों को पूछा है-तुमने सच भी कहा है और झूठ भी कहा है। सच और झूठ मिलाकर भी कहा है। लेकिन किसी भी तरह मुझे सत्य क्या है, यह जानने नहीं दिया। तुम्हारे पथ के दावेदार की मैं सेक्रेटरी हूं फिर भी तुम्हारे कार्य-पद्धति में मेरी बिल्कुल श्रद्धा नहीं है। मैंने यह बात कभी नहीं छिपाई। तुम नाराज नहीं हुए। न अविश्वास ही किया। मुस्कराते हुए केवल मुझे अलग कर देना चाहा है। अपूर्व बाबू के जीवन-दान की बात भी मैं भूली नहीं हूं। मालूम होता है - मेरे छोटे से जीवन का कल्याण केवल तुम्हीं निर्देशित कर सकते हो। भैया, जाते समय अब अपने आपको छिपाकर मत जाओ। तुम्हारा, मेरा, सभी का जो परम सत्य है - उसे ही आज कपट छोड़कर स्पष्ट प्रकट कर दो।”

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