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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


सुमित्रा बोली, “कब गूंथेंगे, यह बात वह ही जानते हैं। लेकिन तुमने बातें गूंथकर उनका जो मूल्य बढ़ा दिया है, उसे भारती कैसे संभालेगी।”

सुनकर सभी हंसने लगे।

डॉक्टर ने कहा, “शशि होगा हम लोगों का राष्ट्र-कवि। हिंदुओं का नहीं, मुसलमानों का नहीं, ईसाइयों का नहीं - केवल मेरे देश का कवि। सहस्र नद-नदी प्रवाहित हमारा बंग देश, हमारी सुजला-सुफला-शस्य श्यामलां, खेतों से भरी बंग भूमि। मिथ्या रोग का दु:ख नहीं, मिथ्या दुर्भिक्ष की क्षुधा नहीं, विदेशी शासन के दुस्सह अपमान की ज्वाला नहीं, मनुष्यत्व हीनता की लांछना नहीं - शशि तुम होगे उसी का चारण कवि। क्या तुम न हो सकोगे भाई?”

भारती का समूचा बदन रोमांचित हो उठा। शशि 'भाई' सम्बोधन की मधुरता से विगलित होकर बोला, “डॉक्टर चेष्टा करने पर मैं अंग्रेजी में भी कविता लिख सकता हूं। यहां तक कि....”

डॉक्टर बीच में ही रोककर बोल उठे, “नहीं, नहीं अंग्रेजी में नहीं। केवल बंगला में। केवल सात करोड़ अधिवासियों की मातृभाषा में। शशि, संसार की लगभग सभी भाषाएं मैं जानता हूं। लेकिन सहस्र दलों में विकसित ऐसी मधु से भरी भाषा और नहीं है। मैं अक्सर सोचता रहता हूं भारती, ऐसा अमृत इस देश में कब, कौन लाया।”

भारती की आंखों की कोरों में आंसू भर आए। उसने कहा, “मैं सोचा करती हूं भैया, देश को इतना प्यार करना तुम्हें किसने सिखाया था?”

शशि बोल उठा, “इस विगत-गौरव का गान ही मेरा गान होगा। यह प्रेम का सुर ही मेरा सुर होगा। अपने देश को हम लोग.... जिससे फिर उसी तरह प्यार करने लगें ऐसी शिक्षा ही मेरी शिक्षा होगी।”

डॉक्टर ने आश्चर्य भरी नजरों से शशि की ओर देखा। सुमित्रा के चेहरे पर भी नजर डाली। और अंत में दोनों की समझ में नहीं आया। इसलिए वह दोनों ही अप्रतिभ हो गए।

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