ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
डॉक्टर बोले, “क्या फिर उसी प्रकार प्यार करने लगोगे, तुमने जिस प्रकार के प्रेम का संकेत किया है! शशि, उस प्रकार का प्रेम बंगालियों ने कभी अपने बंग देश से नहीं किया। उसका तिलार्थ प्रेम भी होता तो क्या बंगाली ही विदेशियों के साथ षडयंत्र करके अपने सात करोड़ भाई-बहिनों को दूसरों के हाथों में सौंप सकते थे।? जननी भूमि-केवल कहने भर की बात थी। मुसलमान बादशाहों के पैरों के नीचे अंजलि देने के लिए हिंदू मानसिंह, हिंदू प्रतापादित्य को जानवर की तरह बांध कर ले गया था और उसके लिए रसद जुटाकर, रास्ता दिखाकर आए थे बंगाली। जब बर्मी लोग हमारा देश लूटने के लिए आते थे तब बंगाली लड़ते नहीं थे। सिर पर हांडी रखकर पानी में बैठे रहते थे। मुसलमान दस्यु मंदिर ध्वंस करके जब हमारे देवताओं के कान काट लेते थे, तब बंगाली सिर पर पांव रखकर भाग जाते थे। धर्म की रक्षा के लिए गर्दन नहीं देते थे। वह बंगाली हमारे कुछ भी नहीं लगते कवि। गौरव करने योग्य उनमें कुछ भी नहीं था। हम लोग उनको बिल्कुल अस्वीकार करके चलेंगे। उनका धर्म, उनका अनुशासन, उनकी भीरुता, उनकी देशद्रोहिता, उनकी रीति-नीति-उनका जो कुछ भी है, वही तो होगा तुम्हारा विप्लव गान। वही तो होगा तुम्हारा सच्चा देश-प्रेम।”
शशि विमूढ़-सा देखता रह गया।
डॉक्टर बोले, 'उनकी कापुरुषता से हम लोग विश्व के सामने हेय हो रहे हैं। उनकी स्वार्थपरता के भार से संकटग्रस्त और पंगु हो गए हैं। यह केवल क्या देश ही की बात है? जिस धर्म को वह स्वयं नहीं मानते थे, जिस देवता पर उनके मन में श्रद्धा ही नहीं थी, उनकी ही दुहाई देकर वह समूची जाति के सिर से पांव तक युक्तिहीन विधि-निषेधों के हजारों बंधनों में क्या नहीं बांध गए हैं? यह अधीनता ही तो हमारे अनेक दु:खों की जड़ है।”
शशि ने कहा, “यह सब आप क्या कह रहे हैं?”
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