ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार पथ के दावेदारशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
|
286 पाठक हैं |
हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।
परिहास समझ अपूर्व प्रसन्न होकर बोला, “क्या आप ऐसा सोच सकती हैं?”
“हां, सोच सकती हूं।”
अपूर्व बोला, “लेकिन मैं तो प्राण जाने पर भी धर्म का त्याग नहीं कर सकता।”
भारती बोली, “प्राण जाना क्या वस्तु है, आप यही तो नहीं जानते। तिवारी जानता है, लेकिन इस विषय पर बहस करने से अब क्या लाभ है? आपकी तरह अंधकार में डूबे व्यक्ति को प्रकाश में लाने की अपेक्षा अधिक आवश्यक काम अभी मुझे करने बाकी हैं। आप थोड़ी देर सो रहिए।”
अपूर्व बोला, “मैं दिन में कभी नहीं सोता।”
भारती बोली, “मुझे तो मुट्ठी भर अन्न पकाकर खाना पड़ता है। सो नहीं सकते तो मेरे साथ नीचे चलिए। मैं क्या रसोई पकाती हूं, किस तरह पकाती हूं, यही देखिए। जब एक दिन मेरे हाथ का खाना ही पड़ेगा तो अनजान रहना उचित नहीं।” यह कहकर खिलखिलाकर हंस पड़ीं।
अपूर्व बोला, “मैं मर जाने पर भी आपके हाथ का नहीं खाऊंगा।”
“मैं जीवित रहते खाने की बात कह रही हूं,” कहकर हंसती हुई नीचे चली गई।
अपूर्व चिल्लाकर बोला, “तब मैं अपने डेरे पर चला जाता हूं, तिवारी परेशान होगा।”
लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। आलस्य आ जाने के कारण वह आराम करने लगा।
|