लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> पथ के दावेदार

पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

286 पाठक हैं

हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


“उन्हें सहमत करके साथ ले आइए। वह आएंगी।”

अपूर्व हंसकर बोला, “कभी नहीं। मां को आप नहीं जानतीं। अच्छा मान लो, वह आ जाएं, तो उनकी देख-भाल कौन करेगा?”

“मैं करूंगी!”

“आप करेंगी? आपके घर में कदम रखते ही मां बर्तन उठाकर फेंक देंगी।”

भारती बोली, “कितनी बार फेंक देंगी। मैं रोज कमरे में जाऊंगी।

दोनों हंस पड़े। भारती ने सहसा गम्भीर होकर कहा, “आप भी तो बर्तन फेंकने वालों के दल के ही हैं। लेकिन फेंक देने से ही सारा बखेड़ा समाप्त हो जाता तो संसार की सारी समस्याएं सुलझ जातीं। विश्वास न हो तो तिवारी से पूछ लीजिएगा।”

अपूर्व बोला, “यह तो सच है। वह बर्तन तो फेंक देगा लेकिन साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी बहेंगे। आपके लिए उसके मन में अपार भक्ति है। थोड़ा-सा सिखाने-पढ़ाने से वह ईसाई भी बन सकता है।”

भारती बोली, “संसार में कब क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता, न नौकर के संबंध में और न...” यह कहकर उसने हंसी छिपाने के लिए मुंह नीचा किया तो अपूर्व का चेहरा लाल हो उठा। बोला, “पर यह तो निश्चित है कि नौकर और मालिक की बुद्धि में कुछ अंतर रह सकता है।”

भारती बोली, “अंतर तो है। इसीलिए मालिक के सहमत होने में देर हो सकती है।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book