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पथ के दावेदार

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :537
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9710

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हम सब राही हैं। मनुष्यत्व के मार्ग से मनुष्य के चलने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके, हम सभी बाधाओं को ठेलकर चलेंगे। हमारे बाद जो लोग आएंगे, वह बाधाओं से बचकर चल सकें, यही हमारी प्रतिज्ञा है।


कहते-कहते उसकी नीरस आवाज तेज हो उठी। फिर कहने लगा, “बिना मेहनत के संसार में कुछ पैदा नहीं होता। इसलिए मजदूर भी तुम लोगों की तरह मालिक है - ठीक तुम लोगों की तरह सभी चीजों और सभी कारखानों का अधिकारी है।”

तभी एक पंजाबी ने गोरे नायक के कान में कुछ कहते ही उसकी लाल-लाल आंखें अंगारों की तरह जल उठीं। उसने गरजते हुए कहा, “स्टॉप, नहीं चलेगा। इससे शांति भंग होगी।”

अपूर्व चौंक पड़ा। रामदास के कुर्ते को पकड़कर खींचातानी करने लगा, “ठहरो रामदास, ठहरो। इस निस्सहाय मित्रहीन पराए देश में तुम्हारी पत्नी है, एक छोटी बेटी है।”

रामदास ने कुछ भी नहीं सुना। चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगा, “यह लोग अन्यायी हैं, डरपोक हैं। किसी भी दशा में सत्य को तुम लोगों को सुनने देना नहीं चाहते लेकिन यह लोग नहीं जानते कि सत्य का गला घोंटकर भी उसकी हत्या नहीं की जा सकती। वह अमर होता है। कभी नहीं मरता।”

गोरे ने इसका अर्थ नहीं समझा। लेकिन अचानक सैंकड़ों लोगों के सर्वांग से छिटककर तीक्ष्ण उत्तेजना की भभक उसके मुंह पर लगी। हुंकार कर बोला, “यह नहीं चलेगा। यह राजद्रोह है।”

पलक मारते ही, पांच-छह घुड़सवार घोड़ों से कूदकर रामदास के दोनों हाथों को पकड़कर जोर से खींचते हुए नीचे ले गए। उसका दीर्घ शरीर घोड़ों और घुड़सवारों की बीच देखते-देखते ही ओझल हो गया। लेकिन उसकी तेज और ऊंची आवाज बंद नहीं हुई। आवाज उत्तेजित अपार भीड़ के एक छोर से दूसरे छोर तक गूंजने लगी, “भाइयो! अब मुझसे आप लोगों की भेंट कभी नहीं होगी। लेकिन मनुष्य होकर जन्म लेने की मर्यादा अगर अपने मालिकों के पैरों के नीचे न कुचलवा चुके होंगे तो इतने बड़े उत्पीड़न, इतने बड़े अपमान को कभी बर्दाश्त मत करना।”

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